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________________ ६०५ ललित वाङ्मय १. टोका-आसढ़ कवि २. वृत्ति-क्षेमहंस ( १६वीं शती) ३. बालावबोध-महीमेरु ४. अवचूरि-कनककीर्ति ( १७वीं शती) ५. ,, ,,--सुमतिविनय ६., ,-विनयचन्द्र (वि० सं० १६६४ ) ७. पंजिका--गुणरत्न ( १७वीं शती) ८. टीका-चारित्रवर्धनगणि ( १५वीं शती) ९. , , जिनहंससूरि १०. , ,-महिमसिंह ( वि० सं० १६९३) ११. , ,-सुमतिविजय (१८वीं शती) ,,-समयसुन्दरोपाध्याय ( १७वीं शती) १३. ,,,-श्रीविजयगणि १४.,,,विजयसूरि (वि० सं० १७०९) १५. , , मेघराजगणि १६. मेघलता-अज्ञातकर्तृक महाकवि कालिदास के काव्यों के पश्चात् महाकवि भारवि के प्रसिद्ध महाकाव्य 'किरातार्जुनीय' पर भी दो जैन टीकाएं मिलती हैं : वि० सं० १६०३ या १६१३ में रचित विनयसुन्दरकृत टीका और तपागच्छ के धर्मविजयगणिकृत दीपिका टीका। प्राचीन गद्यकाव्यों में सुबन्धु की वासवदत्ता' पर सिद्धिचन्द्रगणिकृत वृत्ति मिलती है तथा सर्वचन्द्रकृत वृत्ति और नरसिंहसेनकृत टीका का उल्लेख मिलता है। इसी तरह महाकवि बाणकृत गद्यकाव्य कादम्बरी के पूर्व खण्ड पर भानुचन्द्रगणिकृत तथा उत्तर खण्ड पर सिद्धिचन्द्रगणिकृत टीका प्रकाशित १. जिनरस्नकोश, पृ. ९१. १. वही, पृ० ३४८; जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग २, किरण १. ३. जिनरत्नकोश, पृ० १५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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