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________________ ललित वाङ्मय ६०१ कादम्बरी पर एक मात्र प्रकाशित प्राचीन टोका' के लेखक भानुचन्द्रगणि. सिद्धिचन्द्रगणि का नाम किस संस्कृतज्ञ को ज्ञात नहीं है ? काव्यप्रकाश के मर्मश माणिक्य चन्द्रसूरि को उस पर लिखो संकेतटीका के लिए कभी नहीं भूल सकते । १५.१६वीं शती में जैन विद्वानों में अनेक टीकाकार हए हैं जिन्होंने स्वतंत्र रचनाओं की अपेक्षा टीकाएं लिखना ही अपने जीवन का व्रत बना लिया था। खरतरगच्छ के चारित्रवर्धनगणि ( १५वीं शती) अनेक साहित्यिक कृतियों पर टीकाएं लिखने के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। उनकी जैन काव्यों में सूक्तिमुक्तावली आदि अनेक ग्रन्थों के अतिरिक रघुवंश, कुमारसम्भव, मेघदूत, नैषध और शिशुपालवध काव्यों पर लिखी टीकाएं भी मिलती हैं। खरतरगच्छ के ही गुणविनयोपाध्याय (१६वीं शती) ने भी अनेक जैन ग्रन्थों पर टीकाएं लिखने के साथ रघुवंश, नल-दमयन्तीचम्पू, खण्डप्रशस्ति आदि पर टीकाएं लिखी हैं। इसी तरह शान्तिसूरि ने घटकपरकाव्य, वृन्दावनकाव्य, शिवभद्र. काव्य एवं राक्षसकाव्य पर टीकाएं लिखी हैं। सर्वाधिक टीकाएं जैन कवियों ने महाकवि कालिदास के काव्यग्रन्थोंरघुवंश, कुमारसम्भव और मेघदूत पर लिखीं। 'रघुवंश" पर निम्नलिखित टीकाएं निम्नोक्त आचार्यों की मिलती हैं : १. शिष्यहितैषिणी-चारित्रवर्धन (वि० सं० १५०७ ) २. टीका-क्षेमहंस ( १६वीं शती) ३. विशेषार्थबोधिका-गुणविनय (वि० सं० १६४६ ) १. निर्णयसागर प्रेस, बम्बई. २. आनन्दाश्रम सिरीज, पूना, १९२१. १. जिनरत्नकोश. ४. वही. ५. वही, पृ० ११३, ३२९, ३६४, ३४३. १. वही, पृ. ३२५, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि अष्ठम शताब्दी स्मृतिग्रन्थ, द्वितीय खण्ड, पृ० २४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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