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________________ A जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सुदी ८ वि० सं० १६४८ को मधूक नगर ( महुआ - - गुजरात ) में समाप्त किया था । इनका परिचय पहले दे आये हैं । ६०२ अन्य नाटकों में आगमगच्छेश मलयचन्द्रसूरिकृत 'मन्मथमथननाट्य' अपरनाम 'स्थूलभद्रनाटक' उल्लेखनीय है । इसकी रचना आचार्य स्थूलभद्र और मेशा (वेश्या) के उपाख्यान पर की गई है। यह गायकवाड़ प्राच्यविद्या संस्थान की पत्रिका ( १९६६-६७ ) में प्रकाशित हुआ है । मेघविजयगणिकृत 'युक्तिप्रबोधनाटक में वाणारसीय मत (दिग० तेरहपन्थ ) araण्डन किया गया है । इस पर स्वोपज्ञ टीका भी मिलती है । जिनरत्नकोश में कवि अर्हद्दासरचित 'अंजनापवनंजय' और केशवसेन भट्टारककृत 'ऋषभदेवनिर्वाणानन्द" नाटक का उल्लेख मिलता है । साहित्यिक टीकाएँ : जैन विद्वानों ने केवल स्वतन्त्र रूप से काव्य - साहित्य की ही सृष्टि नहीं की अपितु आनेवाली पीढ़ी के लिए उस साहित्य को बोधगम्य बनाने के लिए लघु एवं विशालकाय टीकाएँ ( विभिन्न नामों से ) भी लिखीं । उन टीकाओं का यथासम्भव उल्लेख हम उन उन काव्यों के प्रसंग में कर आये हैं । फिर भी ग्रन्थभण्डारों की प्रकाशित बृहत् सूचियों से अनेक अज्ञात टीकाओं का पता लग रहा है जिन्हें जिज्ञासु लोग कष्ट कर वहां से जान लें । जैन विद्वानों ने न केवल जैन साहित्य पर ही टीकाएं लिखीं हैं बल्कि साम्प्रदायिकता का मोह छोड़ उन्होंने जैनेतर साहित्य के न्याय, व्याकरण, ज्योतिष आदि ग्रन्थों पर संस्कृत भाषा में बहुविध टीकाएं लिखने के साथ ही जैनेतर काव्यों, नाटकों, दूतकाव्यों आदि पर विशिष्ट एवं समादरणीय टीकाएं भी लिखी हैं जिनमें से अनेकों से संस्कृत का अध्येतावर्ग सुपरिचित एवं लाभान्वित है । ८४६१ १. वसुवेदरसाब्जाङ्के वर्षे माघे सिताष्टमीदिवसे । श्रीमन्मधूकनगरे सिद्धोऽयं २. जिनरत्नकोश, पृ० ३२०. ३. वही, पृ० ४. ४. वही, पृ० ५७. Jain Education International बोधसंरम्भः ॥ ३॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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