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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
सुभद्रानाटिका:
यह ४ अंकों की नाटिका है। इसमें ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के साथ कच्छराज की पुत्री और विद्याधर नमि को बह्न सुभद्रा के परिणय की घटना वर्णित है।
उक्त नाटिका की कथावस्तु जैन-जगत् में सुप्रसिद्ध है। सुभद्रा भरत के विवाह की चर्चा जिनसेन ने आदिपुराण के ३२वें सर्ग के केवल ५ पद्यों में की है पर कवि हस्तिमल्ल का यह एक नाटकीय विस्तार है और इसे उन्होंने श्रीहर्ष की रत्नावली के अनुसरण पर एक नाटिका का सुन्दर रूप देने का सफल प्रयास किया है। इसमें साहित्यशास्त्रोक्त नाटिका के गुणों का पालन अच्छी तरह हुआ है पर संवादों में कहीं-कहीं विस्तार और समासबहुल पदों का प्रयोग औचित्य को मर्यादा अतिक्रान्त कर देता है । मुहावरे, सुभाषितों से युक्त संवाद इसकी अपनी विशेषता है । कुछ का नमूना इस प्रकार है :
१. वामे विधौ भोः खलु को न वामः । (पृ० ५४ ) २. गतं गतं, गन्तव्यमिदानों चिन्त्यताम् । (पृ० ७०) ३. यत्नान्तरनिरपेक्षैव महाभागानां समोहितसिद्धिः । (पृ० ८३)
४. कुतो मितभाषिता लघुचेतसाम् । (पृ० ८६) विक्रान्तकौरव :
यह ६ अंकों का नाटक है। इसमें हस्तिनापुरनरेश सोमप्रभ के पुत्र कौरवेश्वर ( जयकुमार ) और काशी के राजा अकम्पन की पुत्री सुलोचना के विवाह का चित्रण किया गया है । इसे सुलोचनानाटक भी कहते हैं।
१. माणिकचन्द्र दिग. जैन ग्रन्थमाला, पुष्प ४३ में प्रो० मा० वा०पटवर्धन द्वारा
सम्पादित, बम्बई, १९५०, यह अंजनापवनब्जय के साथ प्रकाशित है। इसकी अंग्रेजी प्रस्तावना में नाटिका के अंकों का सार तथा मुहावरों का
संकलन (पृ० ५६-५७ ) दिया गया है। २. जिनरत्नकोश, पृ० ३५०, माणिकचन्द्र दिग. जैन ग्रन्थमाला, पुष्प ३,
बम्बई, १९७२.
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