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ललित वाङ्मय
अंजनापवनञ्जय :
इस नाटक में ७ अंक हैं। इसमें विद्याधर राजकुमारी अंजना का स्वयंवर, राजकुमार पवनञ्जय के साथ विवाह और उनके पुत्र हनुमान के जन्म का घटना प्रसंग वर्णित है ।
अंजना - पवनंजय का अनेक उतार-चढ़ाव से भरा चरित जैन साहित्यजगत् में सुज्ञात है । विमलसूरि के पउमचरिय के १५-१८ उद्देशक और रविषेण का पद्मपुराण तथा स्वयम्भू के पउमचरिउ की सन्धि १८-१९ इस चरित के आधार हैं पर नाटककार ने इसमें आवश्यक परिवर्तन किये हैं । स्वयंवर की योजना कवि की अपनी कल्पना है। पूर्व चरितों में विवाह के पूर्व ही पवनंजय अंजना से विरक्त था पर यह बात यहाँ एकदम परिवर्तित है । रंगमंच में न दिखाने लायक अन्य घटनाएं, जैसे शिशु हनुमान का विमान से गिरना और शिला चूर हो जाना आदि इसमें नहीं बतलाई गई ।
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नाटक में कथोपकथन-शैली अच्छी है पर कहीं-कहीं नायक और विदूषक के कथन लम्बे और समासबहुल हो गये हैं । यह नाटक के रूप में एक महाकाव्य जैसा है । इसका रंगमंच पर अभिनय करना कठिन है ।
छन्दों की योजना में, दृश्यावली उपस्थित करने में ओर मुहावरेदार वाक्यों की रचना में कवि पूर्ण दक्ष है ।
कुछ मुहावरे ध्यातव्य हैं ।
१. दुरवगाहा हि भागधेयानां परिपाकाः । ( वृ०९ )
२. न खलु दुष्करं नाम दैवस्य । ( पृ० ९७७)
३. अनुभूतं हि शोकं द्विगुणयति बन्धुजनसान्निध्यम् । ( पृ० ११५) ४. : स्वच्छन्दचारिणः खलु प्रभवो भवन्ति । ( पृ० ८६ )
१. जिनरत्नकोश, पृ० ४; माणिकचन्द्र दिग० जैन ग्रन्थमाला, पुष्प ९३, प्रो० माधव वासुदेव पटवर्धन द्वारा सम्पादित, बम्बई, १९५०, इसमें सुभद्रानाटिका भी सम्मिलित है 1
२. अंजनापवनंजय की अंग्रेजी प्रस्तावना में प्रो० पटवर्धन ने पृ० १४-१५ में उन सभी मुहावरों का संकलन किया है ।
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