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________________ ५८४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास द्रौपदीस्वयंवर यह दो अंकों का संस्कृत नाटक' है जिसे गुजरातनरेश 'अभिनव सिद्धराज' विरुदधारी महाराज भीमदेव द्वितीय (वि० सं० १२३५-९८) की आज्ञानुसार त्रिपुरुषदेव के सामने वसन्तोत्सव के समय खेला गया था। इसके अभिनय से राजधानी अणहिलपुर की प्रजा बहुत खुश हुई थी। यह बात नाटक के प्रारम्भ में सूत्रधार के कथन से ज्ञात होती है । इसमें कवि ने ऐसे कई छन्दों का निर्माण किया है जिन्हें पदशः विभक्त कर अनेक पात्रों से कहलाया गया है। - रचयिता एवं रचनाकाल-इसके रचयिता महाकवि श्रीपाल के पौत्र एवं सिद्धपाल के पुत्र महाकवि विजयपाल हैं । कवि की अन्य कोई कृति नहीं मिली है। अन्य उल्लेखों से पता चलता है कि कवि का कुल बड़ा प्रतिष्ठित और सरस्वती-भक्त था । कवि के पिता और पितामह राजकवि थे । ये प्राग्वाट ( पोरवाड) वैश्य तथा श्वेताम्बर सम्प्रदाय के जैन थे । इनके कुटुम्ब की ओर से अणहिलपुर में स्वतंत्र जैन मन्दिर एवं उपाश्रय बनाये गये थे। नाटक में कर्ता को महाकवि कहा गया है जिससे ज्ञात होता है कि कवि ने इस कृति के अतिरिक्त कुछ और ग्रन्थ बनाये थे जो या तो नष्ट हो गये या किन्हीं ग्रन्थभण्डारों में प्रकाश की प्रतीक्षा में पड़े हों। इस नाटक में विजयपाल के पिता का नाम सिद्धपाल दिया है। ये भो महाकवि थे । यद्यपि इनका अब तक कोई ग्रन्थ नहीं मिला है पर शतार्थी काव्य, सूक्तमुक्तावली, सुमतिनाथचरित्र, कुमारपालप्रतिबोध आदि संस्कृत-प्राकृत ग्रन्थों के प्रणेता सोमप्रभसूरि ने उक्त अन्तिम दो ग्रन्थों की प्रशस्तियों में सिद्धपाल का उल्लेख किया है। ये दोनों ग्रन्थ उन्होंने सिद्धपाल के बनाये उपाश्रय में रह कर लिखे थे। कुमारपालप्रतिबोध में दो-चार स्थानों में सिद्धपाल का उल्लेख है और एक स्थान पर लिखा है: कइयावि निवनियुत्तो कहइ कह सिद्धपालकई । (कदापि नृपनियुक्तः कथयति कथां सिद्धपालकविः।) कुमारपालप्रतिबोध में उक्त कवि द्वारा रचित कुछ पद्यों के अतिरिक्त और कोई कृति प्राप्त नहीं हुई है। सिद्धपाल के पिता श्रीपाल थे जो अपने समय के एक प्रसिद्ध महाकवि थे । १. जैन मारमानन्द सभा, भावनगर, १९१८, सम्पादक-मुनि जिनविजयजी. २. भूमिका, पृ० १.७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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