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________________ ललित वाङ्मय ३. मल्लिकामकरन्द : इसकी प्रस्तावना में इसे नाटक कहा गया है पर वास्तव में यह प्रकरण है क्योंकि इसकी कथा काल्पनिक है।' यद्यपि प्रकरण में १० अंक रखने का विधान है पर इसमें केवल ६ अंक हैं। रामचन्द्रसूरि ने अपने नाट्यदर्पण में इसे प्रकरण ही कहा है। यह इस कवि की अन्य रचना कौमुदीमित्राणन्द के समान ही सामाजिक नाटक है । ___ नायिका मल्लिका एक विद्याधर-कन्या थी जिसे नवजात शिशु के रूप में मल्लिका वृक्ष के कुंज में पड़ी पाकर एक सेठ ने उसका पालन किया था। उसकी अंगुलियों में वैनतेय की मुहर वाली अंगूठियाँ थीं और बालों में एक भूर्जपत्र बंधा था जिसमें लिखा था: १६ वर्ष के बाद चैत्र कृष्णा चतुर्दशी को मैं इसके पति और रक्षक को मारकर इसे बलात् ले जाऊँगा'। __ मल्लिका युवती होने पर एक रात्रि में कामदेव के मन्दिर में फाँसी लगाती है और नायक मकरन्द उसे बचा लेता है। दोनों में प्रेम बढ़ जाता है। मल्लिका उसे अपने दोनों कानों के आभूषण देती है। मकरन्द को एक समय जुआड़ी लोग पकड़ते हैं जिसे मल्लिका का धर्मपिता सेठ रुपया देकर छुड़ाता है। सेठ द्वारा यह मालूम कर कि मल्लिका के अपहरण का समय आ रहा है, मकरन्द उसे बचाने का प्रयत्न करता है पर किसी अदृष्ट शक्ति द्वारा मल्लिका का अपहरण हो जाता है (१-२ अंक)। वह विद्याधरों के लोक में जाती है जहाँ एक राजकुमार चित्राङ्गद से विवाह करना अस्वीकार करती है । मकरन्द वहाँ पहुँच जाता है पर मल्लिका की माता चित्रलेखा उसे देख कर क्रुद्ध होती है (३ अंक)। मकरन्द निराश होता है पर उसे एक तोता मिलता है जो उसके स्पर्श से वैश्रवण नामक मनुष्य बन जाता है। वह अपनी विपत्ति की कथा कहता है । इस बीच मकरन्द चित्राङ्गद से मिलता है और उसके आदमियों द्वारा पकड़ा जाता है (४ अंक)। मकरन्द के इस काम में वैश्रवण और उसकी पत्नी मनोरमा सहायता करने की प्रतिज्ञा करते हैं। मल्लिका मकरन्द से अपने दृढ़ प्रेम की बात करती है और पीछे अपनी माता और चित्रांगद से भी (कपटरूप में) (५ अंक)। छठे अंक के प्रारंभ में विष्कम्भक में मल्लिका मकरन्द के बदले अपना प्रेम और अनुराग चित्राङ्गद के प्रति दिखलाती है, जो छलरूप में उसके मन में १. नाव्यदर्पण : ए क्रिटिकल स्टडी, पृ० २३० में संक्षिप्त परिचय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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