________________
जैन साहित्य का वृहद् इतिहास २. नलविलास:
इस नाटक' में ७ अंक हैं। इसकी कथावस्तु का आधार भी महाभारत ही है । यह जैन साहित्य में प्राप्त नल-कथा पर बिल्कुल आश्रित नहीं है और न इसमें साम्प्रदायिकता की थोड़ी भी गन्ध है। ___ महाभारत में नल-कथा के कुछ ऐसे प्रसंग हैं, जैसे हंस के द्वारा नल का सन्देश, कलि का नल के शरीर में प्रवेश और पक्षियों द्वारा नल के वस्त्राभूषण ले जाना आदि, जो कि रंगमंच में नहीं दिखाये जा सकते, उन्हें इस नाटक में बदल कर रंगमंच के अनुरूप बनाया गया है। लेखक के ये परिवर्तन मौलिक सुन्दरता में वृद्धि ही करते हैं। प्रत्येक अंक में लेखक की प्रतिभा, उक्तिवैचित्र्य झलकता है। इसमें दमयन्ती का चरित्र महाभारत की अपेक्षा अधिक उदात्त है। इसमें कई ऐसे संवाद हैं जो पाठकों को द्रवीभूत कर देते हैं। नल और दमयन्ती के बीच वियोग के करुण दृश्य से संवेदनशील पाठक बिना द्रवित हुए नहीं रहेंगे। यह उत्तररामचरित की याद दिलाता है। कवि रामचन्द्र में भाव व्यक्त करने की शक्ति कालिदास और भवभूति के ही समान है। वे अपने वर्णन और संवादों से लोगों के सामने अनोखे दृश्य खड़े कर देते हैं। स्वयंवर का दृश्य बड़ा ही प्रभावक है और हमें रघुवंश के छठे सर्ग की याद दिलाता है।
इस नाटक में अनेकों मुहावरे और सुभाषित भरे पड़े हैं। यथा
सुस्थे हृदि सुधासिक्त, दुःस्थे विषमयं जगत् । वस्तुरम्यमरम्यं वा मनः संकल्पतस्ततः ॥(पृ० ५९) शतेऽपि शिरसां छिन्ने दुर्जनस्तु न तुष्यति । (पृ. ८५)
१. जिनरत्नकोश, पृ. २०५; गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज, २९, बड़ौदा,
१९२६, इसकी प्रस्तावना द्रष्टव्य है। ग. सुशीलकुमार डे ने अपने ग्रन्थ 'हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर', पृ० ४६५ में इस पर सहानुभूतिपूर्वक नहीं लिखा, नाव्यदर्पण : ए क्रिटिकल स्टडी, पृ० २२३ में इसका संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org