________________
ललित वाङ्मय
४ ॥
विविहकइविरइयाणं गाहाणं वरकुचाणि घेत्तृण । रइयं वज्जालग्गं विहिणा जयवल्लह नाम ॥ ३ ॥ एक्कत्थे पत्थावे जत्थ पढिज्जन्ति पउरगाहाओ । तं खलु वज्जालग्गं वज्जत्तिय पद्धई भणिया ॥ अर्थात् जयवल्लभ ने विभिन्न कवियों द्वारा विरचित अच्छी गाथाओं को लेकर विधिवत् वज्जालग्ग की रचना की । यहां एक प्रस्ताव या अधिकार में सम्बद्ध प्रचुर गाथाओं का संकलन किया गया है । वज्जा शब्द पद्धति ( नीतिशतक की पद्धति) का नामान्तर है इसलिए इसे वज्जालग्ग कहते हैं ।
५६१
इस काव्य के वर्गों या प्रस्तावों में कवि ने लोकजीवन से सम्बद्ध भावनाओं का संग्रह किया है । कतिपय वज्जाओं के नाम इस प्रकार हैं : श्रोतृ, गाथा, काव्य, सज्जन, दुर्जन, मित्र, स्नेह, नीति, धीर, साहस, दैव, विधि, दीन, दारिद्रय, सुगृहिणी, सती, असती, कुट्टिनी, वेश्या, वसन्त, ग्रीष्म, प्रावृट्, शरत्, हेमन्त, शिशिर, कमल, चन्दन, वट, ताल, पलाश, रत्नाकर, सुवर्ण, दीपक आदि ।'
सज्जनवज्जा में कवि ने सज्जन के विषय में जिन उदात्त भावाभिव्यंजक गाथाओं का संकलन किया है या उनमें कुछ अपनी भी रचित गाथाएं रखी हैं वैसे भावों का निरूपण अन्य किसी कवि ने संभवतः नहीं किया है । सुघरिणी - वज्जा में भारतीय ललना का सुन्दर वर्णन किया गया है । दरिद्रवज्जा आदि में भी कवि ने हृदयस्पर्शी भावों की ही अभिव्यक्ति की है । शृंगाररसपरक पद्यों में भी कवि ने धार्मिक और वीरभावों को व्यक्त किया है । ग्रन्थकार के जैन होने पर भी इस संग्रह में किसी प्रकार की साम्प्रदायिकता दृष्टिगोचर नहीं होती है ।
अनुमान किया जाता है कि इसका रचनाकाल चौथी शताब्दी है ।
इस काव्य पर सं० १३९३ में रत्नदेवगण ने एक संस्कृत टीका लिखी । इस टीका के लेखन में प्रेरक कोई धर्मचन्द्र थे जो बृहद्गच्छ के मानभद्रसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि के शिष्य थे । इस ग्रन्थ में अनेक गाथाएं हेमचन्द्ररचित और सन्देशरासक के लेखक अब्दुलरहमानरचित संकलित हैं। अनुमान है कि टीकाकार
१. इनके विशेष परिचय के लिए देखें - डा० जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास; डा० नेमिचन्द्र शास्त्री, प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ० ३७७-३८३.
२. जिनरत्नकोश, पृ० २३६.
३६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org