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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उल्लेखनीय हैं। इनका परिचय इस बृहद् इतिहास के चतुर्थ भाग के तृतीय प्रकरण धर्मोपदेश के अन्तर्गत दिया गया है । इसी तरह संस्कृत में गुणभद्र का आत्मानुशासन (९वीं शती), शुभचन्द्र प्रथम का ज्ञानाणव, हरिभद्रकृत धर्मबिन्दु और धर्मसार, रत्नमण्डनगणिकृत उपदेशतरंगिणी, पद्मानन्द का वैराग्यशतक आदि द्रष्टव्य हैं। इनका संक्षिप्त परिचय भी उक्त भाग के तृतीय प्रकरण में दिया गया है।
नैतिक सूक्तिकाव्य के रूप में संस्कृत में अमितगति का सुभाषितरत्नसन्दोह, अहंद्दास का भव्यजनकण्ठाभरण, सोमप्रभ का सूक्तिमुक्तावलिकाव्य, नरेन्द्रप्रभ का विवेकपादप, विवेककलिका आदि हैं।' इस प्रकार के अन्य ग्रन्थों में मल्लिषेण का सज्जनचित्तवल्लभ (१२वीं शती), अज्ञातकर्तृक सिन्दूरप्रकर या सोमतिलक-सोमप्रभकृत शृंगारवैराग्यतरंगिणी, राजशेखरकृत उपदेशचिन्तामणि, हरिसेन का कपूरप्रकर, दर्शनविजय का अन्योक्तिशतक, हंसविजयगणि का अन्योक्तिमुक्तावली, अज्ञातकर्तृक आभाणशतक, धनदराजकृत धनदशतकत्रय, तेजसिंहकृत दृष्टान्तशतक आदि उल्लेखनीय हैं।
काव्य की दृष्टि से इनमें अनेक (धर्म एवं नीतितत्त्व-प्रधान ) रसेतर मुक्तक काव्य हैं और अनेक रस-मुक्तक काव्य हैं।
प्राकृत में हाल के गाथासप्तशती के समान ही वन्जालग्ग नामक एक रसमुक्तक काव्य उपलब्ध हुआ है । वज्जालग्ग:
इसमें' ७९५ गाथाएँ हैं जिनका संकलन श्वेताम्बर मुनि जयवल्लभ ने किया है । इसमें भी अनेक प्राकृत कवियों की सुभाषित गाथाएँ संगृहीत हैं।
वज्जालग्ग का वज्जा शब्द देशी है जिसका अर्थ अधिकार या प्रस्ताव होता है। एक विषय से सम्बद्ध कतिपय गाथाएँ एक वज्जा के अन्तर्गत संकलित की गई हैं, जैसे भर्तृहरि के नीतिशतक में। जयवल्लभ ने प्रारंभ में ही इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है:
१. जिनरत्नकोश में इनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है। २. जिनरत्नकोश, पृ० ३४०, पृ० २३६ में इसके पयालय, वज्रालय
आदि नाम दिये हैं; बिब्लिमोथेका इटिका सिरीज (रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल), कलकत्ता, १९१४-१९२३.
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