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ललित वाङ्मय
पूरा किया गया है । मेघदूत के समान ही इसमें मन्दाक्रान्ता छन्द का व्यवहार किया गया है और वैसी ही काव्य की भाषा भी प्रौढ़ है, पर समस्यापूर्ति के रूप में काव्य की शैली जटिल हो गई है जिससे पंक्तियों के भाव में यत्र-तत्र विपर्यस्तता आ गई है ।
इस काव्य का वर्ण्यविषय २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के ऊपर घोर उपसर्ग से सम्बद्ध है जिसमें उपसर्ग करने वाले शम्बर यक्ष के पूर्वजन्म के कथानकों से जोड़कर कथावस्तु' दी गई है। पुराणों में वर्णित पार्श्वनाथ के चरित्र को अनेक स्थलों में कवि ने आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया है फिर भी मेघदूत के उद्धृत अंश के प्रचलित अर्थ को विद्वान् कवि ने अपने स्वतंत्र कथानक में प्रसंगोचित अर्थ में प्रयुक्त कर बड़ी विचक्षणता का परिचय दिया है। एक-दो या दसपचास पंक्तियों की समस्या एक बात हो सकती है, पर सम्पूर्ण काव्य को इस तरह आत्मसात् करना सचमुच में विलक्षण ही है।
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इस काव्य में समस्यापूर्ति का आवेष्टन तीन रूपों में रखा गया है : १. पादवेष्टित, २. अर्धवेष्टित और ३ अन्तरितावेष्टित । अन्तरितावेष्टित में भी एकान्तरित, द्वयन्तरित आदि कई प्रकार हैं । प्रथम पादवेष्टित में मेघदूत के पद्य का कोई एक चरण लिया गया है, द्वितीय अर्धवेष्टित में कोई दो चरण और तृतीय अन्तरावेष्टित में मेघदूत के पद्य के प्रथम चतुर्थ या द्वितीय चतुर्थ या प्रथम- तृतीय या द्वितीय तृतीय चरणों को रखा गया है । तीनों प्रकार के उदाहरण अन्यत्र द्रष्टव्य हैं। विस्तारभय से यहां देना सम्भव नहीं ।
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वैसे पार्श्वभ्युदय मेघदूत की समस्यापूर्ति में इस श्रेणी में रख सकते हैं पर इसमें दूत या सन्देश
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२. प्रो० काशीनाथ बापूजी पाठक का कहना है
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१. विस्तृत कथावस्तु के लिए देखें - डा० नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ० ४७३-४७४.
लिखा गया है, इससे उसे शैली के कोई लक्षण नहीं
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The first place among Indian poets is allotted to Kalidas by consent of all. Jinasena, however, claims to be considered a higher genius than the author of the Cloud Messenger ( मेघदूत ). ३. संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान. पृ० ४७१-४७७.
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