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________________ ललित वाङ्मय रहता था। इसकी कविगोष्ठी में अनेक विद्वान्, कलाकार इकठे होते थे और उन्हें यह भूमि, वस्त्र आदि से सन्तुष्ट किया करता था। इसके जोवनचरित पर कवि महेश्वर ने एक मनोहर काव्य लिखा है। मण्डन द्वारा लिखे एवं लिखवाये ग्रन्थों की प्रतियों में दी गई प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कि वह १५वीं शताब्दी के अन्त तक जीवित था ।' ____मंडन ने अनेक ग्रन्थों की रचना की थी। उनमें से जो प्रकाश में आये हैं वे निम्नांकित हैं : १. कादम्बरीमण्डन, २. चम्पूमण्डन, ३. चन्द्रविजयप्रबंध, ४. अलंकारमण्डन, ५. काव्यमण्डन, ६. शृंगारमण्डन. ७. संगीतमण्डन, ८. उपसर्गमण्डन, ९. सारस्वतमण्डन, १०. कविकल्पद्रुम ।' कर्ता ने अपने प्रत्येक ग्रन्थ के साथ अपना नाम जोड़ दिया है। मण्डन का अर्थ भूषण भी लिया जा सकता है। इनमें से अलंकारमण्डन और कविकल्पद्रम काव्यशास्त्र पर, संगीत. मण्डन संगीतशास्त्र पर, उपसर्गमण्डन संस्कृत के प्र, परा आदि उपसर्गों पर और सारस्वतमण्डन सारस्वत व्याकरण पर लिखे गये हैं। शेष काव्य हैं। संधान या अनेकार्थक काव्य : संस्कृत भाषा में एक ओर जहाँ एक वस्तु के अनेक पर्यायवाची होते हैं वहाँ कुछ ऐसे शब्द भी हैं जिनके अनेक अर्थ पाये जाते हैं। संस्कृत की इस विशिहता का जैन मनीषियों ने काव्य के क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रयोग किया। उन्होंने संघान अर्थात् श्लेषमय चित्रकाव्यों की रचना और उसका स्तोत्र साहित्य के रूप में भी विकास किया है । उन्होंने द्विसंधान, चतुस्संधान, पंचसंधान. सप्तसंधान एवं चतुर्विंशतिसंधान काव्य रचे हैं । अनेकार्थ काव्यों की ओर जैन कवियों की प्रवृत्ति ५वीं-६ठी सदी ईस्वी से हुई है। वसुदेवहिण्डी की चत्तारि अहगाथा के चौदह अर्थ किये गये हैं। संस्कृत के १. यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ, खुडाला (राजस्थान ), वि० सं० २०१५, पृ० १२८-१३४, दौलतसिंह लोढ़ा, मंत्री मण्डन और उसका गौरवशाली वंश. २. इनमें से प्रथम छः ग्रन्थ हेमचन्द्राचार्य सभा, पाटन से प्रकाशित हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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