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________________ ४९८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास धार्मिक तत्त्वों का निरूपण प्रधान हो गया है। इस निरूपण में कुछ शास्त्रार्थ शैली अपना ली गई है । तर्कों के आधार पर सर्वशसिद्धि भी की गई है ।' इस काव्य में विविध रसों का परिपाक हुआ है। इसमें प्रधान रस वीर है । वीर रस के सहायक के रूप में रौद्र और भयंकर रस का परिपाक हुआ है । इनके अतिरिक्त अंगरूप में वात्सल्य, शृंगार और शान्तरस भी विद्यमान है। इस काव्य की भाषा शुद्ध और सरल है। भाषा पर कवि का पूर्ण अधिकार दिखाई देता है। इसमें क्लिष्टता और अस्वाभाविकता का पूर्ण अभाव है । प्रसंग के अनुकूल रूपपरिवर्तन की क्षमता इस काव्य की भाषा की विशेषता है। भाषा में लोकोक्तियों और सूक्तियों का अच्छा प्रयोग किया गया है। जिससे भाषा अधिक प्रभावशालिनी हो गई है। इसी तरह इस कान्य की भाषा शब्दालंकारों और अर्थालंकारों से सुसज्जित है। इसमें श्रुतिमधुर अनुप्रासों और यमक आदि शब्दालंकारों के प्रचुर प्रयोग हुए हैं। अर्थालंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिशयोक्ति, सहोक्ति आदि अनेक अलंकारों की योजना हुई है। इस काव्य के प्रत्येक सर्ग में प्रधान रूप से एक हो छन्द का प्रयोग हुआ है और सर्गान्त में छन्दपरिवर्तन कर दिया गया है। कवि का प्रिय छन्द उपजाति मालूम होता है । उसका प्रयोग प्रथम, छठे, दसवें, चौदहवें, सत्रहवें, उन्नीसवें सर्ग में हुआ है । इस काव्य में कुल मिलाकर १८ छन्दों का प्रयोग हुआ है। अनुष्टुभ् मान से इस काव्य की श्लोकसंख्या २२०० है ।' प्रकाशित रचना में १५४८ पद्य हैं। रचयिता और रचनाकाल-कवि ने इस काव्य के अन्त में एक प्रशस्ति दी है। तदनुसार इसके रचयिता अभयदेवसूरि हैं। उन्होंने उक्त प्रशस्ति में अपनी गुरुपरम्परा देते हुए लिखा है कि चन्द्रगच्छीय वर्द्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि हुए, उनके शिष्य नवांगीटीकाकार अभयदेवसूरि हुए, उनके शिष्य प्रसिद्ध विद्वान् जिनवल्लभसूरि हुए और उनके शिष्य जिनेश्वरसूरि हुए जिनके शिष्य का १. सर्ग १५८, १०, १२, १७, २२-४२ भादि. २. सर्ग १०. २७-२९, ९. ३८-३९, ४. ९.१२, १४, १६. ३७, ६. ९६.९७ १८. ५०, ५५-५६ भादि. ३. सर्ग ५.२८, ३५, ५६, ५७, १३. १०९, १९, ४६. ४. द्वाविंशतिशतमान शास्त्रमिदं निर्मितं जयतु । . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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