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प्रकरण ५
ललित वाङ्मय
इस प्रकरण में शास्त्रीय महाकाव्य, गद्यकाव्य, चम्पू , दूतकाव्य, नाटक आदि (अलंकार तथा रस शैली पर लिखा हुआ साहित्य ) का समावेश होगा।
शास्त्रीय महाकाव्य की तीन श्रेणियों-रीतिमुक्त, रीतिबद्ध एवं शास्त्रकाव्यबह्वर्थककाव्य-का परिचय हम प्रास्ताविक में कर आये हैं । जैन कवियों ने प्राकृत में किसी प्रकार के शास्त्रीय महाकाव्य की रचना नहीं की। संस्कृत में इस प्रकार के काव्यों की संख्या बहुत कम है। ये प्रायः भारवि, माघ आदि के महाकाव्यों के अनुकरण पर रचे गये हैं जो कि रीतिबद्ध श्रेणी में या भट्टिमहाकाव्य आदि के अनुकरण पर शास्त्रकाव्य और बह्वर्थककाव्यों के रूप में ही मिलते हैं। इन महाकाव्यों में निम्नलिखित प्रवृत्तियाँ दृष्टिगत होती हैं :
१. इनकी रचना में लक्षणग्रन्थों में प्राप्त अधिकांश महाकाव्य-सम्बन्धी नियमों का पालन हुआ है।
२. भारवि, माघ तथा श्रीहर्ष आदि के महाकाव्यों के आदर्श पर इनकी कथावस्तु अत्यन्त स्वल्प रखी गई है किन्तु वस्तुव्यापार का अनावश्यक विस्तार किया गया है। प्राकृतिक वर्णनों के बाहुल्य से इनका कथानक उखड़ा-सा लगता है।
३. इनमें स्थल-स्थल पर कवि ने पाण्डित्यप्रदर्शन, वाक्चातुरी और कल्पनावैभव दिखाने की चेष्टा की है। ___४. इनकी भाषा किरातार्जुनीय, शिशुपालवध आदि का आदर्श मानकर चली है। इससे भाषा-शैली उदात्त, प्रौढ़ और कहीं कहीं दुर्बोध हो गई है। इनमें रस, अलंकार और छन्दोयोजना पर बहुत बल दिया गया है। रसों में शृङ्गार, वीर और शान्त रस को प्रमुखता दी गई है। अन्य रसों का चित्रण गौणरूप में किया गया है। अलंकारों में शब्दालंकार तथा चित्रकाव्यों की श्रमसाध्य योजना उल्लेखनीय है।
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