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________________ ऐतिहासिक साहित्य - ४७३ लिए 'देवीचन्द्रगुप्त' नाटक तथा कुछ तांबे के सिक्के मिले थे पर उसके अस्तित्व का अन्तिम निर्णय जैन मूर्तियों के लेखों से ही हो सका है। गत वर्ष गुप्तकाल की तीन जैन मूर्तियाँ विदिशा ( मध्य प्रदेश ) के वेशनगर के समीपस्थ ग्राम दुर्जनपुर में बुलडोजर से जमीन साफ करते समय मिली हैं जिनमें गुप्तकालीन लिपि में स्पष्ट रूप से महाराजाधिराज रामगुप्त लिखा मिला है। गुप्तकाल में पीतल आदि धातुओं द्वारा जैनों ने प्रतिमा निर्माणकला का विकास किया था और मुगलकाल आते-आते इसका प्रचुर मात्रा में प्रसार हो गया था । इसका प्रधान कारण यह था कि मुसलमान मूर्तिभंजक थे और पाषाणमूर्तियाँ शीघ्र ही नष्ट की जा सकती थीं जबकि धातुप्रतिमाएँ कम । प्रतिमा-लेखों के महत्त्व को देखकर अब तक अनेक प्रतिमालेख संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं | आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने सन् १९१७ और १९२४ में श्वेता० जैन धातु प्रतिमालेख संग्रह' के दो भागों में २६८३ प्रतिमालेख प्रकाशित कराये । विजयधर्मसूरि के उपरिनिर्दिष्ट प्राचीन जैन लेख संग्रह में भी अधिकांश प्रतिमालेख ही हैं । स्व० पूरणचन्द्र नाहर के जैन लेख संग्रह ३ भागों में प्रायः प्रतिमालेख ही अधिक हैं; दूसरे और तीसरे भाग में तो बीकानेर और जैसलमेर के ही प्रतिमालेखों का संग्रह है जिनकी संख्या १५८० से अधिक है । मुनि जयन्तविजय के आबू के लेखसंग्रहों में भी प्रायः हजारों प्रतिमालेख संकलित हैं । आचार्य विजययतीन्द्रसूरि के 'यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन" के चारों भागों में अनेक प्रतिमालेख संगृहीत हैं । मुनि कान्तिसागर द्वारा सम्पादित 'जैन धातु प्रतिमालेख' ३ में ३६९ प्रतिमालेख संवत्क्रम से सं० १०८० से १९५२ तक के हैं । परिशिष्ट में शत्रुंजय तीर्थसम्बन्धित दैनन्दिनी भी छपी है । सन् १९५३ में उपाध्याय मुनि विनयसागर ने संवत् के अनुक्रम से १२०० लेखों का संग्रह प्रतिष्ठालेख संग्रह नाम से प्रकाशित किया जिसमें स्व० डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ने महत्वपूर्ण भूमिका लिखी । इसकी प्रधान विशेषता श्रावकभाविकाओं के नामों की है । rs तक सबसे बड़ा प्रतिमालेख संग्रह श्री अगरचन्द्रजी नाहटा का 'बीकानेर लेख संग्रह" है जिसमें बीकानेर और १. अध्यात्मप्रसारक मण्डल, पादरा. २. यतीन्द्र साहित्यसदन, खुड़ाला. ३. जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार, सूरत. ४. नाइटा ब्रदर्स, ४ जगमोहन मल्लिक लेन, कलकत्ता. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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