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________________ ऐतिहासिक साहित्य પ इस ग्रन्थ में बड़ी विशद रीति से वर्णन किया गया है। गुजरात, मेवाड़, मारवाड़, सिंघ, बागड, पंजाब और बिहार आदि अनेक देशों, अनेक गाँवों में रहनेवाले सैकड़ों धर्मिष्ठ और घनिक श्रावक-श्राविकाओं के कुटुम्बों का और व्यक्तियों का नामोल्लेख मिलता है, साथ ही उन्होंने कहाँ पर कैसे पूजा-प्रतिष्ठा एवं संघोत्सव आदि धर्मकार्य किये, इसका निश्चित विधान मिलता है । ऐतिहासिक दृष्टि से यह ग्रन्थ अपने ढंग की एक अनोखी कृति है । इसमें राजस्थान के अनेक राजवंशों से सम्बद्ध इतिहास - सामग्री, राजकीय हलचलें एवं उपद्रव तथा भौगोलिक बातें दी गई हैं । ' रचयिता - प्रस्तुत गुर्वावलि में सं० १३०५ आषाढ़ शु० १० तक का वृत्तान्त तो श्री जिनपतिसूरि के विद्वान् शिष्य श्री जिनपालोपाध्याय ने दिल्ली निवासी सेठ साहुजी के पुत्र हेमचन्द्र की अभ्यर्थना पर संकलित किया था। इसके पश्चात् का वर्णन भी पट्टधर आचार्यों के साथ में रहनेवाले विद्वान् मुनियों द्वारा लिखा गया प्रतीत होता है । इसकी एक प्रति ८६ पत्र की है और १५ - १६वीं शती में लिखी हुई बीकानेर के क्षमाकल्याण ज्ञानभण्डार में विद्यमान है । इसमें सं० १३९३ तक का इतिहास वर्णित है । ' वृद्धाचार्य-प्रबंधावलि : गुर्वावलि के रूप में यह कृति प्राकृत भाषा में प्रथित है । इसमें वर्धमानसूरि से लेकर जिनप्रभसूरि तक के १० आचायों का वर्णन दिया गया है । जिनप्रभसूरि विविधतीर्थकल्प आदि अनेक ग्रन्थों के प्रणेता हैं । वे अपने समय में बहुत प्रभावशाली एवं प्रतिभासम्पन्न आचार्य हुए थे। इनका सम्मान दिल्ली का बादशाह मुहम्मद तुगलक करता था, यह कई पट्टावलियों एवं प्रबन्धात्मक कृतियों १. सिंघी जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित उक्त ग्रन्थ की भूमिका के पृ० ६-१२ में इस गुर्वावलि के ऐतिहासिक महत्त्व को बतलानेवाला श्री अगरचन्द नाहटा का लेख प्रकाशित है । २. इसके पश्चात् इतिहास जानने के लिए हमें कोई भी इस कोटि की गुर्वावलि उपलब्ध नहीं है परन्तु श्रृंखलाबद्ध इतिहास लिखने की प्रथा पीछे बराबर रही है। सं० १८६० की एक सूची के अनुसार जैसलमेर के सुप्रसिद्ध जैन ज्ञानभण्डार में उस समय ३१२ पत्रों की एक गुर्वावलि विद्यमान थी । सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४२, पृ० ८९-९६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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