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________________ १४९ ऐतिहासिक साहित्य पट्टावली और गुर्वावलि जिस प्रकार ब्राह्मणों और उपनिषदों के समय में अध्येता लोग ब्रह्मा से लेकर 'अस्माभिरधीतम्' तक के विद्यावंश का स्मरण किया करते थे उसी प्रकार जैन लोग भी श्रमण भग० महावीर से प्रारंभ करके उनके गण और गणधरों की परम्परा का स्मरण करते हुए कालान्तर के आचार्यों की गुरु-शिष्य-परम्परा के द्वाग अपने विद्यावंश का पूरा ब्यौरा रखते थे। इससे जैन संघ एक जीवित संस्था बना रहा । जिस तरह शासक राजाओं की वंशावली चलती थी उसी तरह धर्मशासक आचार्यों की थी।' जैन संघ के संगठन की मूल रेखा कल्पसूत्र में मिलती है। इसमें प्राप्त होने वाली पट्टावली' व स्थविरावली का समर्थन मथुरा के कंकाली टोले से प्राप्त पहली-दूसरी शतो के प्रतिमा-लेखों से होता है। वहाँ का शक्तिशाली संघ समस्त उत्तरापथ में प्रख्यात था। कालान्तर में संघ का एक प्रान्तीय संगठन धीरे-धीरे बढ़ता गया। आगमों में दूसरी पट्टावली नन्दिसूत्रगत स्थविरावली है जिसकी रचना आचार्य देवर्धिगणि क्षमाश्रमण ने की थी। यह ४३ गाथाओं की है। इसमें अनुयोगघरों की अर्थात् सुधर्मा से देवर्षिगणि तक की पट्टावली दी गई है। महावीर के बाद जैन संघ में सम्प्रदाय भेद के सम्बन्ध में कारणों का संकलन तो विभिन्न ग्रन्थों में किया गया है पर इस सम्बन्ध में ईसा की प्रारम्भिक शता. ब्दियों के दिग०.श्वेता० सम्प्रदायभेद के अर्घऐतिहासिक उपाख्यान हमें हरिभद्र और शान्तिसूरि की टीकाओं में मिलते हैं, इनमें बोटिक मत की उत्पत्ति दी गई है और इसी तरह हरिषेण के बृहत्कथाकोश, देवसेन के दर्शनसार (वि० सं० ९९९), द्वितीय देवसेन के भावसंग्रह तथा रत्ननन्दि के भद्रबाहुचरित में श्वेताम्बर संघ की उत्पत्ति की कथा दी गई है। १. जिनरत्नकोश, पृ० १०८-१०९ में गुर्वावलियों की तथा पृ० २३२ में पट्टा- वलियों की सूची दी गई है। २. पट्टावली पट्टधरावली का संक्षिप्त रूप है। पट्ट का मर्थ भासन या सम्मान का स्थान है। राजाओं के शासन को सिंहासन कहते हैं और गुरुषों के भासन को पट्ट। इस पट्ट पर भासीन गुरुषों को पट्टधर और उनकी परम्परा को पट्टावली कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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