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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पद्य १६२-७७ में रचयिता ने वस्तुपाल द्वारा निर्मित धार्मिक तथा लौकिक भवनों को गिनाया है और अन्त में पद्य १७८ में प्रशस्तिरचयिता का नाम और १७९ में आशीर्वचन दिया गया है । इस प्रशस्ति के रचयिता उदयप्रभसूरि हैं जिनका परिचय धर्माभ्युदयकाव्य के प्रसंग में दिया गया है। कवि ने इस प्रशस्ति को शत्रुजय पर्वत के ऊपर आदिनाथ के मन्दिर में किसी स्थान पर शिलापट्ट पर उत्कीर्ण कराने के लिए रचा था। उदयप्रभसूरि ने वस्तुपाल द्वारा स्तम्भतीर्थ में निर्मित उपाश्रय की भी एक प्रशस्ति बनाई थी। इसमें १९ पद्य हैं और कुछ भाग गद्य का भी है। इसमें निर्माता और उसके गुरु के वंशवृश्च एवं प्रशंसा के अतिरिक्त दूसरा कुछ नहीं है। इन्हीं आचार्यकृत ३३ पद्यों की संग्रहरूप एक 'वस्तुपालप्रशस्ति' मिलती है । यह किसी घटना विशेष पर या किसी सुकृत की स्मृति में रची गई प्रतीत नहीं होती, बल्कि भिन्न-भिन्न अवसरों पर वस्तुपाल की प्रशंसा पर लिखे गये पद्यों की संग्रहरूप है। ये पद्य बड़े ही सुन्दर हैं।' उदयप्रभसूरिकृत ५ पद्यों का एक अन्य प्रशस्तिलेख भी मिलता है जिसमें नेमिनाथ और आदिनाथ के प्रति भक्तिभाव व्यक्त करते हुए वस्तुपाल की दानशीलता एवं धार्मिकता को बतलाकर उसकी दीर्घायु की कामना की गई है । वस्तुपाल-तेजपालप्रशस्ति : __ यह ७७ पद्यों का कीर्तिकाव्य है । यह भृगुकच्छ के शकुनिविहार नामक मुनिसुव्रत स्वामी के मन्दिर में छोटी देवकुलिकाओं पर तेजपाल द्वारा स्वण ध्वजदण्ड चढ़ाए जाने की स्मृति में रचा गया है। इसमें अन्य प्रशस्तियों की भाँति ही चौलुक्यनरेशों का वर्णन पद्य ४-३१ में तथा बघेलों का पद्य ३२-३८ में तथा दाता वस्तुपाल-तेजपाल का पद्य ३९-५१ तक वंशवृक्ष दिया गया है और १. महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मण्डल, पृ० १८२. २. महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ में पृ० ३०३-३३० में प्रकाशित मुनि पुण्यविजय जी के लेख 'पुण्यश्लोक महामात्य वस्तुपालना अप्रसिद्ध शिलालेखो तथा प्रशस्तिलेखो' में प्रशस्तिलेखांक २. ३. जिनरत्नकोश, पृ० ३४५; गायकवाड़ प्राच्य ग्रन्थमाला, संख्या १० (बड़ौदा, १९२०) में हम्मीरमदमर्दन नाटक के परिशिष्ठरूप में प्रकाशित. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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