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ऐतिहासिक साहित्य
४३७ कर दिया जाता है। तदनन्तर दान का वर्णन किया जाता है और पीछे किसके लिए और किन शर्तों में दान हुआ था इसका भी उल्लेख किया जाता है। स्थापत्य प्रशस्ति में निर्माता शिल्पी का, प्रतिष्ठाता गुरु का, प्रशस्ति-रचयिता कवि का, ताम्र या शिला पर लिखनेवाले लेखक और उसे उत्कीर्ण करनेवाले त्वष्टा का नाम दिया जाता है। स्थापत्य-प्रशस्तियों ( शिलालेखों और ताम्रपत्रों) के समान ही ग्रन्थ-प्रशस्तियाँ या स्वतन्त्र काव्यात्मक प्रशस्तियाँ महत्त्वपूर्ण और विश्वसनीय हैं। अन्तर इतना है कि ये प्रशस्तियाँ अल्पस्थायी कागज या ताड़पत्रों में लिखी मिलती हैं जब कि स्थापत्य-प्रशस्तियाँ दीर्घस्थायी पाषाण और धातुओं पर । जहाँ तक ऐतिहासिक दृष्टि से रचना और विवरण का सम्बन्ध है दोनों एक सी हैं।
स्वतन्त्र काव्यात्मक प्रशस्तियों के परिचयक्रम में हमने पहले ही ऐतिहासिक काव्यों के पहले प्राचीनता की दृष्टि से गुणवचनद्वात्रिंशिका नामक एक प्रशस्ति का परिचय दे दिया है । कुछ अन्य उपलब्ध प्रशस्तियों का परिचय भी प्रस्तुत करते हैं। वस्तुपाल और तेजपाल के सुकृतों की स्मारक प्रशस्तियाँ :
वस्तुपाल तेजपाल के सम्बन्ध में छोटी-बड़ी अनेक प्रकार की प्रशस्तियाँ मिलती हैं । प्रथम प्रशस्ति है : सुकृतकीर्तिकल्लोलिनो : ___यह १७९ श्लोकों की लम्बी प्रशस्ति है जो वस्तुपाल के सुकृतों की परिचायक स्तुति-कथा ही है। इसमें उन बातों का संक्षिप्त वर्णन है जिनका अरिसिंह के काव्य सुकृतसंकीर्तन में है।
परम्परानुसार मंगलाचरण के बाद पद्य ९-१८ में चावड़ा वंश के राजाओं के शौर्य का वर्णन है, तदनन्तर १९-६९ तक पद्यों में चौलुक्य नृपों का वर्णन, तत्पश्चात् ७०-९७ पद्यों में वीरधवल और उसके पूर्वजों की प्रशंसा की गई है। वस्तुपाल के वंशवृक्ष, मंत्रित्वकाल और उसके परिवार की प्रशंसा ९८-१३७ पद्यों में है । पद्य १३८-१४० में वस्तुपाल के शौर्य कार्यों का वर्णन है और १४१-१४९ में उसकी संघयात्राएँ वर्णित हैं। पद्य १५०-१५७ में नागेन्द्रगच्छ के आचार्यों की पट्टावली तथा १५८-६१ में विजयसेनसूरि की प्रशंसा की गई है । तत्पश्चात्
१. जिनरत्नकोश, पृ. ४४३, गायकवाड़ प्राच्य ग्रन्थमाला, क्रमांक १०
(बड़ौदा, १९२०) में हम्मीरमदमर्दन नाटक के परिशिष्ठरूप में प्रकाशित.
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