________________
ऐतिहासिक साहित्य
इस काव्य के रचयिता जयसिंहसूरि के प्रशिष्य ने एक दूसरा ऐतिहासिक काव्य लिखा था जो चौहानवंश से सम्बद्ध है। उसका परिचय इस प्रकार है :
हम्मीरमहाकाव्य : ___ इस काव्य' में रणथंभोर के चौहानवंशो अन्तिम नरेश हम्मीर और दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन के बीच हुए ऐतिहासिक युद्ध का वर्णन है। इसमें १४ सर्ग हैं जिनमें सब मिलाकर १५६४ श्लोक हैं। यह ऐतिहासिक शैली के महाकाव्यों में महत्त्वपूर्ण कृति है।
इस काव्य का कथानक सर्गक्रम से इस प्रकार है : प्रथम सर्ग में चाहमान कुल की उत्पत्ति तथा वासुदेव से लेकर सिंहराज तक हम्मीर के पूर्वजों का वर्णन है। द्वितीय तथा तृतीय सर्ग में पृथ्वीराज चाहमान और सहाबदीन के बीच सात बार युद्ध और अन्त में पृथ्वीराज की पराजय और बन्दीगृह में मृत्यु होने का वर्णन है। चतुर्थ सर्ग में हम्मीर के जन्म का वर्णन है। हम्मीर पृथ्वीराज के पौत्र गोविन्दराज की शाखा में उसके पौत्र जैत्रसिंह और रानी हीरादेवी का पुत्र था। पंचम सर्ग में वसन्तऋतु आने पर युवक हम्मीर के उद्यान में जाने और वहाँ पौर-पौराङ्गनाओं की वनक्रीड़ा का वर्णन है। षष्ठ सर्ग में जैत्रसागर में उनकी जलक्रीड़ा का वर्णन है। सप्तम में संध्या, चन्द्रोदय तथा रात्रि-वर्णन है। अष्टम में जैत्रसिंह हम्मीर को राजा बनाता है और राजनीति पर बड़े महत्व के उपदेश देता है। कुछ समय बाद वह दिवंगत हो जाता है । नवम सर्ग में हम्मीर की दिग्विजय का वर्णन है। दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन का एक मुगल सरदार उसका अपमान कर हम्मीर की शरण में भाग जाता है। हम्मीर के उसे वापस न करने पर अलाउद्दीन अपने भाई उल्लूखान को हम्मीर पर आक्रमण करने भेजता है। हम्मीर उस समय कोटियज्ञ कर रहा था अतः त्रिशुद्धिव्रत लेने के कारण स्वयं युद्धक्षेत्र में न जाकर अपने सेनापति भीमसिंह और धर्मसिंह को युद्ध करने भेजता है। धर्मसिंह की मूर्खता से चौहान सेना हार जाती
१. संपा०-नीलकण्ठ जनार्दन कीर्तने, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, १८७९; मुनि
जिनविजय द्वारा सम्पादित, राजस्थान ग्रन्थमाला से प्रकाशित, इसमें डा० दशरथ शर्मा की भूमिका द्रष्टव्य है। विशेष के लिए देखें-डा. श्यामशंकर दीक्षितकृत 'तेरहवों-चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य', पृ० १६३-१९२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org