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________________ ३९९ ऐतिहासिक साहित्य इस पद्य में इतिहास के रूप में अवन्तिभटों की हालत का वर्णन है। वे वृद्ध-युवा सभी अपने दुर्ग के परकोटे की रक्षा में लग गये और चौलुक्य सेना के सामरिक नगाड़ों की आवाज से नहीं डरे। इसमें हेमचन्द्र दीर्घकाल तक चलने वाले युद्ध के एक दृश्य का वर्णन करते दिखाई पड़ते हैं जिसके विवरणों को उन्होंने निःसन्देह रूप में सुना है। परन्तु इस पद्य में हेमव्याकरण के चतुर्थाध्याय के प्रथम पाद के १-६ तथा ११ सूत्र के उदाहरण दिये गये हैं। सम्भव है यह पद्य इतिहास व्याकरण दोनों उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा है। इस प्रकार के अनेकों पद्य हैं। यहाँ दूसरा नमूना प्रस्तुत है : सुप्रेयसी करुणया बहु विष्णुमित्र ग्रामेऽप्यभूत् ससुत एव जनो नृपेऽस्मिन् । सुभ्रातृपुत्रसहिते क्षतनाडिकृत्त, तंत्री - गला - जबलिमाय न देवतापि ।। इस पद्य में कुमारपाल की अमारि-घोषणा के प्रभाव का वर्णन है, साथ में हेमव्याकरण के पाँच सूत्रों ७. ३. १७६-१८० के उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं। 'सुभ्रातृपुत्रसहिते' पद की टीकाकार अभयतिलकगणि' ने व्याख्या कर अर्थ निकाला है कि अजयपाल कुमारपाल का भतीजा था परन्तु एक समकालीन स्रोत से ज्ञात होता है कि अजयपाल कुमारपाल का बेटा था।' इससे यह मालूम होता है कि हेमचन्द्र द्वारा शब्दों के विचित्र प्रयोग से टीकाकार ने पुत्र को भतीजे के रूप में समझ लिया है परन्तु इसके द्वारा कुमारपाल के अमारि-घोषणा के प्रभाव के वर्णन में हेमचन्द्र सफल रहे हैं । __ यहाँ अब ऐसे एक पद्य को बतलाते हैं जिसमें हेमचन्द्र ने इतिहास और ब्याकरण दोनों के उद्देश्य पूर्ण किये हैं पर उसके अगले पद्य में वे असफल रहे हैं। उन्होंने १४३ सर्ग के ७२वें पद्य में वर्णन किया है कि सिद्धराज ने राजा यशोवर्मा को, जो एक गौरेया चिड़िया के समान था, पराजित कर दिया; परन्तु :. शोभनो भ्राता कुमारपालो यस्य स सुभ्राता महीपालदेवस्तस्य पुत्रोऽजयपाल देवस्तेन सहिते। २. सुरथोत्सव, १५. ३१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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