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________________ ३९८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बारहवें से पन्द्रहवें सर्ग तक जयसिंह की दैवी चमत्कारों से पूर्ण विविध विजयों, धार्मिक कार्यों तथा स्वर्गप्राप्ति का वर्णन है । सोलहवें सर्ग में कुमारपाल की राज्यप्राप्ति तथा अनेक नरेशों के विद्रोह-शमन का वर्णन है। विजयप्रसंग में उसके आबू पर्वत पर आने तथा आबू के माहात्म्य का वर्णन है। सत्रहवें सर्ग में रात्रि, चन्द्रोदय, सुरत आदि का वर्णन है। अठारहवे में कुमारपाल का प्रस्थान, उन्नीसवे में अर्णोराज से युद्ध का वर्णन है । बोसवें सर्ग में कुमारपाल द्वारा अमारि-घोषणा, मृतक-धन अग्रहण, मन्दिर निर्माण आदि लोकोपकारी कार्यों का वर्णन दिया है। इसी सर्ग में कुमारपाल संवत् चलने का उल्लेख है। प्राकृत द्वयाश्रय के प्रथम सर्ग में अणहिलपुर में बन्दोजनों द्वारा कुमारपाल की कीर्ति का वर्णन तथा शयनोत्थान से लेकर श्रम-गृहगमन तक दिनचर्या का वर्णन दिया गया है। द्वितीय में मल्लश्रम, कुंजरयात्रा, जिनमन्दिरयात्रा, जिनपूजा आदि का वर्णन दिया गया है। तृतीय में उपवन, वसन्तशोभा आदि का वर्णन है। चौथे में ग्रीष्म और पाँचवे में अन्य ऋतुओं के विहार आदि का सालंकार वर्णन है। छठे में चन्द्रोदय का वर्णन तथा राज्यदरबार में सान्धिविग्रहिक की विज्ञप्ति द्वारा कोंकणाधीश मल्लिकार्जुन पर विजय होने से कुमारपाल के दक्षिणाधीश बनने की तथा पश्चिम दिशा के अनेक नृगों द्वारा अधीनता स्वीकार करने की एवं काशी, मगध, गौड, कान्यकुब्ज, दशार्ण, चेदि, जंगलदेश आदि देशों के राजाओं द्वारा अधीनता ग्रहण करने की सूचना दी गई है। इसके बाद कुमारपाल का शयन वर्णित है । सातवे सर्ग में आरम्भ में राजा द्वारा परमार्थचिन्ता वर्णित है। पहले आचार्यों की स्तुति और पीछे श्रुतदेवता की स्तुति दी गई है। आठवें सर्ग में श्रुतदेवी का उपदेश दिया गया है। इस वर्णन में कवि ने विषय के चुनाव और त्याग में विचारपूर्वक काम लिया है। यहाँ द्वयाश्रयकाव्य को ऐतिहासिकता विचारने के प्रसंग में यह आवश्यक है कि हेमचन्द्र ने अपने द्वयाश्रय काव्य के कुछ खास पद्यों द्वारा व्याकरण के उदाहरणों में इतिहास गर्भित करने के प्रयत्न में कहाँ तक सफलता या असफलता प्राप्त की है। यहाँ हम तद्धित प्रत्ययों के उदाहरणों के लिए प्रस्तुत एक पद्य को लेते हैं: तत्तद्वितं कर्तृभिरात्मभर्तुः, समेत्य वृद्धैर्युवभिः क्षणाद्वा । दुष्टैरथावन्तिभटः स वप्रोऽध्यारोह्य भीतैः रणतूर्यवाद्यात् ॥ १४. ३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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