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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास एतद्विषयक अन्य रचना-भोजप्रबंध-सत्यराजगणिकृत भी मिलती है।' सत्यराज की अन्य रचना पृथ्वीचन्द्रचरित्र (सं० १५३५ ) भी मिलती है ।
मेरुतुंगकृत प्रबंधचिन्तामणि' ( सं० १३६१ ) में वर्णित भोज-भीमप्रबंध से उक्त रचनाओं में बड़ी सहायता ली गई है। यह प्रबंध भी भोज के सम्बन्ध की अनेक लोककथाओं से भरा हुआ है पर इसमें ऐतिहासिकता की अधिक रक्षा की गई है।
भोज के चाचा मुंज पर परीकथा लिखी गई है। प्रबंधचिन्तामणि में मुंजराजप्रबंध में मुंजराज से सम्बन्धित अनेक उक्तियाँ दी गई हैं। स्वतन्त्र रचनाओं के रूप में कृष्णर्षिगच्छीय महेन्द्रसूरि के शिष्य जयसिंहसूरि (सं० १४२२ के लगभग) द्वारा रचित मुंजनरेन्द्रकथा तथा सं० १४७५ में एक अज्ञातकर्तृक मुंजभोजनृपकथा' मिलती है।
महीपालकथा या महीपालचरित-इस कथा का नायक वास्तव में परीकथा का एक राजपुत्र है। इस कथा में परीकथा और पौराणिककथा का अच्छा सम्मिश्रण किया गया है। इस पर प्राकृत-संस्कृत में कई रचनाएँ उपलब्ध होती हैं।
कथावस्तु-महीपाल किसी देश का राजा न था पर उज्जयिनी के राजा नरसिंह के पास रहनेवाला कलाविचक्षण राजपुत्र था। राजा ने उसे अपने मनोविनोद के लिए रख छोड़ा था पर वह कलाओं को सीखने के लिए यहाँ-वहाँ घूमता-फिरता था। इससे राजा ने नाराज होकर उसे निकाल दिया। महीपाल अपनी पत्नी के साथ घूमता-फिरता भडोच में आया और वहाँ से जहाज द्वारा कटाहद्वीप पहुँचने के लिए चल पड़ा पर दुर्भाग्य से समुद्र में ही जहाज फट जाने से किसी तरह किनारे लगा और उस कटाहद्वीप के रत्नपुर नगर में रहने लगा। वहाँ रत्नपरीक्षा में अपनी कला दिखाकर उसने राजपुत्री से विवाह किया और उसके साथ जहाज में बैठ अपनी पूर्वपत्नी सोमश्री की खोज में निकला। राजा ने अपनी पुत्री और जामाता की देखरेख के लिए अथर्वण नामक मंत्री को साथ
१. वही, पृ० २९९. २. सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १, पृ० २५-५२. ३-४. जिनरत्नकोश, पृ० ३१०. ५. वही, पृ० ३०४; विण्टरनित्स, हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २,
पृ० ५३६-३७. .
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