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________________ कथा-साहित्य ३६५. की है। इसके अन्तिम अध्याय में भट्टारक परम्परा का इतिहास दिया गया है । गिरिनारोद्धार' नामक एक अन्य रचना में गिरिनार का माहात्म्य वर्णित है । बहुत से तीर्थों का संक्षिप्त परिचय देने के लिए जिनप्रभसूरिकृत विविध - तीर्थका ( सं० १३६४-८९ ) प्रकाशित है । इसका परिचय इस इतिहास के चतुर्थ भाग में दिया गया है । तिथि - पर्व पूजा-स्तोत्रविषयक कथाएँ : जैन विद्वानों ने तप, शील, ज्ञान और भावना के समान तथा तीर्थों के माहात्म्यों के समान अपने धर्म या सम्प्रदाय के मान्य पर्वों तथा पुण्य तिथियों के माहात्म्य को बतलानेवाले अनेक कथाग्रन्थ लिखे हैं । इस प्रवृत्ति का सूत्रपात १४-१५वीं शती से विशेष हुआ है पर १६ - १७वीं शताब्दी में एतद्विषयक विशाल साहित्य की सृष्टि हुई है । यहाँ कुछ रचनाओं का परिचय तथा अन्य कृतियों का विस्तारभय से उल्लेख मात्र करेंगे । पाश्चात्य देशों में अच्छा समीक्षात्मक अध्ययन प्रारम्भ हो गया है । अतः ये उपेक्षणीय। इन कथाओं पर भी मननीय हैं, न कि ज्ञानपंचमीकथा - कार्तिक शुक्ल पंचमी को ज्ञानपंचमी और सौभाग्यपञ्चमी नाम से भी कहा जाता है। इस दिन ग्रन्थ को पट्टे पर रखकर पूजा, संमार्जन, लेखन आदि करना चाहिये और 'नमो नाणस्स' का १००० जाप करना चाहिये । इसके माहात्म्य को प्रकट करने के लिए ज्ञानपञ्चमीकथा, श्रुतपञ्चमीकथा, कार्तिकशुक्ल पञ्चमीकथा', सौभाग्यपञ्चमीकथा या पञ्चमीकथा, वरदत्तगुणमञ्जरीकथा' तथा भविष्यदत्तचरित्र' नाम से अनेकों कथाप्रन्थ लिखे गये हैं। २ १. जिनरत्नकोश, पृ० १०५. २. वही, पृ० १४८. ३. वही, पृ० ८५. ४. वही, पृ० २२६, ४५३. ५. वही, पृ० ३४१. ६. वही, पृ० २९३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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