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कथा-साहित्य
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मलयसुन्दरःकथा — इसमें महाबल और मलयसुन्दरी की प्रणयकथा का वर्णन है । इस नाम की अनेक रचनाएँ विविधकतृक मिलती हैं । '
प्रथम प्राकृत १२५६ गाथाओं में अज्ञातकतृ क है । इसमें एक पौराणिक कथा का परीकथा से संमिश्रण किया गया है। इसमें प्रचुर कल्पनापूर्ण अनोखे और जादूभरे चमत्कारी कार्यों की बाढ़ में पाठक बहता है। इस उपन्यास में परीकथा साहित्य में सुज्ञात कल्पनाबन्धों ( motifs ) का ताना-बाना फैला हुआ है जिसमें राजकुमार महाबल और राजकुमारी मलयसुन्दरी का आकस्मिक मिलन, फिर एक दूसरे से वियोग और फिर सदा के लिए मिलन चित्रित है । यह सब उनके पूर्वोपार्जित कर्मों के फल का ही आश्चर्यकारी रूप था । पीछे महावल जैन मुनि हो जाता है और मलयसुन्दरी साध्वी । इस तरह जैन पौराणिक कथा को परीकथा से संमिश्रितकर प्रस्तुत किया गया है ।
यह कथानक जैन समाज में बहुत प्रचलित रहा है ।
इस पर १५वीं शताब्दी में संस्कृत गद्य में अंचलगच्छ के माणिक्यसूरि ने 'महाचलमलयसुन्दरी' नामक कथा लिखी है । प्राकृत चरित्र को आधार बना कर संस्कृत पद्यों में आगमगच्छ के जयतिलकसूरि ने भी मलयसुन्दरीचरित्र' की रचना की है । यह चार प्रस्तावों में विभक्त है जिनमें २३९० श्लोक हैं। जयतिलकसूरि ने इसे ज्ञान का माहात्म्य प्रकट करनेवाला ज्ञानरत्न- उपाख्यान कहा है ।" इसमें मलयसुन्दरी को भग० पार्श्वनाथ के निर्वाण से १०० वर्ष बाद उत्पन्न होना बतलाया गया है ।" इसी शताब्दी में पल्लीगच्छ के शान्तिसूरि ने ५०० ग्रन्थाग्र- प्रमाण मलयसुन्दरीचरित्र को सं० १४५६ में बनाया है और पिप्पलगच्छ
१. जिनरत्नकोश, पृ० ३०२, विण्टरनिस्ल, हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृ० ५३३.
२. जिनरत्नकोश, पृ० ३०२; बम्बई से १९१८ में प्रकाशित.
३. वही; देवचन्द्र लालभाई पु० ग्रन्थमाला, बम्बई; हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९१०, विजयदानसूरीश्वर जैन ग्रन्थमाला, वरतेज, सं० २००९. ४. ज्ञानादुद्धियते जन्तुः पतितोऽपि महापदि ।
एकश्लोकार्थबोधेन यथा मलयसुन्दरी ॥ १.१९ ॥
५. मलयसुन्दरी चरित्र, प्रस्ताव ४.८२४.
६. वही; इसका जर्मन अनुवाद हर्टल ने 'इण्डिश मार्सेन' (१९१९) में किया है; विण्टरनित्स, हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृ० ५३३ पर टिप्पण.
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