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________________ कथा-साहित्य हैं । संस्कृत में हर्षवर्धन गणिकृत रचना उपलब्ध होती है।' इसका रचनासमय ज्ञात नहीं है । देवदत्तकुमारकथा - संतोष और विरति तथा अनासक्ति भावना के महत्त्व को बतलाने के लिए संस्कृत और गुजराती में देवदत्तकुमार के चरित्र का वर्णन हुआ है । संस्कृत में उक्त कथा की अज्ञातकर्ता के कृतियाँ उपलब्ध हुई हैं । --- त्रिभुवनसिंहचरित — महीतल में करोड़ों उपाय हैं पर कर्मफल टाला नहीं जा सकता । कर्मफल की महत्ता को बतलाने के लिए इस चरित्र का चित्रण संस्कृत और गुजराती में किया गया है । संस्कृत गद्य में ६८४ ग्रन्थाग्र प्रमाण एक अज्ञातक' के रचना प्रकाशित हुई है । ३२७ देवकुमारचरित - गुजराती जैन कवियों ने देवकुमार के कौतुक और आश्चर्य से पूर्ण चरित्र का सप्तव्यसन का त्यागकर गृहस्थ धर्म में अदत्तादान आदि व्रतों को दृढ़ता से पालने के दृष्टान्तरूप में प्ररूपण किया है। संस्कृत में ५२७ ग्रन्थान- प्रमाण एक रचना उपलब्ध होती है । कर्ता और रचनाकाल ज्ञात नहीं है। राजसिंहकथा - णमोकार मन्त्र के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए राजसिंह और रत्नवती की कथा पश्चिम भारत में प्रसिद्ध है । इस पर संस्कृत में एक अज्ञातकर्तृक रचना मिलती है। गुजराती में इस सम्बन्ध में कई रास मिलते हैं। सं० १९०० में तपागच्छीय पद्मविजय के शिष्य रूपविजय ने ४१३ श्लोकों में राजसिंह - रत्नवती कथा की रचना की है। मधनसिंहकथा - उपदेशप्रासाद एवं श्राद्धविधि में मायाकपट-विरमण के प्रसंग में तथा प्रतिक्रमण के महत्त्व को प्रकट करने के लिए महणसिंह का दृष्टान्त आया १. जिनरत्नकोश, पृ० ४१२. २. वही, पृ० १७७; जैन गुर्जर कविओ, भाग २, पृ० ८२, ९३४ . ३. जिनरत्नकोश, पृ० १६१; हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९२२-२३. ४. वही, पृ० १७७. ५. वही, पृ० ३३१. ६. जैन गुर्जर कविओ, भाग १-३ में कृतियों की अनुक्रमणो देखें. ७. जिनरत्नकोश, पृ० ३३१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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