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________________ ३१४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कही । उसमें धर्मदत्त के जीव ने पूर्वभव में साधुओं को १६ मोदक दिये थे इससे उसे १६ करोड़ का सुवर्ण मिला और चन्द्रधवल ने अगणित मोदक दिये थे इससे उसे अगणित सोना और धनराशि मिली। उक्त कथानक को लेकर कई रचनाएँ मिलती हैं। सर्वप्रथम अंचलगच्छीय मेरुतुंग के शिष्य माणिक्यसुन्दरकृत है जिसका समय वि० सं० १४८४ है। इनकी अन्य कृतियों में शुकराजकथा आदि हैं। प्रस्तुत कथा प्रचलित संस्कृत गद्य में लिखी गई है। बीच में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और देशी भाषा के सुभाषित हैं। दूसरी रचना विनयकुशलगणिकृत है । इसका रचना संवत् ज्ञात नहीं है । इस विषय की अन्य कृतियाँ अज्ञातकर्तृक हैं। उनमें एक प्राचीन कृति का संवत् १५२१ दिया गया है।' रत्नसारमन्त्रिकथा-वर्धमानदेशना ( शुभवर्धनगणि ) में परिग्रह-परिमाण के विषय में रत्नसार की कथा कही गई है। इसी कथा को लेकर अज्ञातकर्तृक रत्नसारमंत्रिदासीकथा' मिलती है। इसी कथा को लेकर संस्कृत गद्य में तपागच्छीय आचार्य यतीन्द्रसरि ( २०वीं शता० ) ने रत्नसारचरित्र' की रचना की है। रत्नपालकथा–रत्नपाल के जन्मकाल में ही उसके माता-पिता निधन एवं कर्जदार हो जाते हैं और साहकार उसे २७ दिन की आयु में ऋण अदायगी तक के लिए ले जाता है । युवा होने पर किस तरह रत्नपाल विदेश यात्रा करता है और इधर उसके माता-पिता लकड़ी बेचकर दुःख उठाते हैं, रत्नपाल किस तरह उन सबको कर्ज से मुक्ति दिला सुख-सम्पत्ति पाता है आदि चरित्र दिया गया है। ___इसमें जीव कैसे एक ही जन्म में कर्म की विचित्रता का अनुभव करता है यह दिखलाने की चेष्टा की गई है। १. जिनरत्नकोश, पृ० ११८, १८९; हंसविजय फ्री लायब्रेरी, अहमदाबाद, सं० १९८१. ३. वही, पृ० १८९. ४. वही, पृ० ३२८. ५. यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ४१. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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