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________________ २८८ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास पार्श्वनाथचरित की रचना श० सं० ९४७ की कार्तिक सुदी ३ को की गई थी' इसलिये हम अनुमान कर सकते हैं कि यह उसके बाद और श० सं० ९६४ के बीच कभी रचित हुई होगी। श० सं० ९६४ जयसिंह के राज्य का अन्तिम वर्ष माना जाता है। ___३. यशोधरचरित-माणिक्यसूरिकृत इस काव्य में १४ सर्ग हैं जिनमें कुल मिलाकर ४०५ श्लोक हैं। कवि ने अपनी कथा का स्रोत संभवतः हरिभद्रसूरि की समराइच्चकहा को माना है। इस चरित का कथानक संगठित एवं धारावाहिक है। इसमें अवान्तर कथाओं का अभाव होने से शिथिलता नहीं आ सकी है। इस चरित्र में प्रकृति-चित्रण भी विविध रूपों में हुआ है। पर अधिकतर घटनाओं के अनुकूल पृष्ठभूमि प्रदान करने के लिए ही प्रकृति का वर्णन हुआ है। इस काव्य में रचयिता ने जैनधर्म के प्रमुख सिद्धान्त-केवल अहिंसा काहिंसा के दोष और अहिंसा के गुणों का प्रारंम से अन्त तक वर्णन किया है । उसी के प्रतिपादन तक ही अपने को सीमित रखा है और जैनधर्म के अन्य नियमों का निरूपण नहीं किया है। इस काव्य की भाषा यद्यपि प्रौढ और गरिमायुक्त नहीं है फिर भी यह अत्यन्त सरल और प्रसादगुणयुक्त है। कवि को विविध स्थितियों और घटनाओं के सजीव चित्र उपस्थित करने में बड़ी सफलता मिली है। इस काव्य में मुहावरों, लोकोक्तियों और सूक्तियों का भी यथावसर प्रयोग हुआ है। इस चरित्र की भाषा में बोलचाल के कई देशी शब्द संस्कृत के ढांचे में ढालकर प्रयुक्त हुए हैं जैसे-कुंचिका (कंची), कटाही (कढ़ाई ), भटित्र ( भट्टी), मिंटा ( मेढ़ा ), वर्करः ( बकरा ), चारक ( चारा), वटक ( वाटी) आदि । कवि ने इस काव्य में अलंकारों की कृत्रिम और अस्वाभाविक योजना प्रायः कहीं नहीं की। भाषा के स्वाभाविक प्रवाह में ही अनेक अलंकार स्वतः आ गये हैं। इस चरित्र में विविध छन्दों का प्रयोग दर्शनीय है। ७, ९, १. पार्श्वनाथचरित, प्रशस्ति, पद्य ५. २. सम्पादक-हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९१०, जिनरत्नकोश, पृ० १९. ३. १.४२-४३, ७१-७२, ३.५,६१, ५.४-७; ६.२-४, ८.४२-४३, ४५-४० मादि. १. २.६८, ६९, ३.४०, ४.४०, ६.७०,७७, ११३, १२.७५. ५. २.७; १२. २६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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