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________________ २६४ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास युगप्रधानचरित-युगप्रधान आचार्यों के समुदित चरित्र को लेकर ६००० ग्रन्थान-प्रमाण एक रचना का जैन ग्रन्थावलि में उल्लेख मिलता है।' सप्तव्यसनकथा-सप्तव्यसन अर्थात् जुआ, चोरी, शिकार, वेश्यागमन, परस्त्रीसेवन, मद्य एवं मांसभक्षण के कुपरिणाम को बतलाने के लिए सात कथाओं के संग्रहरूप में कई कृतियां मिली हैं। उनमें सोमकीर्ति भट्टारककृत सप्तव्यसनकथा (सं० १५२६ ) में सात सर्ग हैं । यह कथा-साहित्य का अच्छा ग्रन्थ है। अन्य रचनाओं में सकलकीर्तिकृत १८०० ग्रन्थान-प्रमाण तथा भुवनकीर्तिकृत' ३५०० ग्रन्थान-प्रमाण एवं कुछ अन्यकर्तृक सप्तव्यसनकथाएँ मिलती हैं। समितिगुप्तिकषायकथा-इसमें उक्त विषयक कथाओं का संग्रह है। इसकी रचना तपागच्छीय कमलविजयगणि के शिष्य कनकविजय ने की है। रचनाकाल ज्ञात नहीं है। ____ कामकुम्भादिकथा-संग्रह-यह पाँच कथाओं का संग्रह है जो कि विजयनीतिसूरि के शिष्य पन्यास दानविजयजी के सदुपदेश से प्रकाशित हुआ है। इसमें संस्कृत गद्य में कामकुम्भकथा अपरनाम पापबुद्धि-धर्मबुद्धिकथा, तथा पाँच पापों को सेवन करनेवाले सुभूम चक्रवर्ती की, अभयदान देनेवाले दामन्नक की, तथा चार नियमों का पालन करनेवाले वंकचूल की एवं शील पारनेवाली नर्मदासुन्दरी की कहानी है। सभी कहानियां रोचक एवं उपदेशप्रद हैं। अन्य कथाकोशों या संग्रहों में निम्नलिखित कृतियां मिलती हैं : अमरसेनवज्रसेनादिकथादशक, आवश्यककथासंग्रह, अष्टादशकथा (सकलकीर्ति सं० १५२२), उपासकदशाकथा' (पूर्णभद्र सं० १२७५, प्राकृत), उत्तराध्ययनकथासंग्रह २ (शुभशील सं० १५६०), उत्तराध्ययनकथाएँ'३ ( पद्म १. जिनरत्नकोश, पृ. ३२१. २-५. वही, पृ. ४१६. ६. वही, पृ. ४२१. ७. वही, पृ० ८४. ८. वही, पृ० १५. ९. वही, पृ० ३४. ५०. वही, पृ० १९. ११. वही, पृ० ५६. १२-१३. वही, पृ० ४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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