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कथा-साहित्य
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कर्ता एवं रचनासमय-२४वे स्तंभ के अन्त में ५१ पद्यों का गुरुपट्टानुक्रम दिया गया है और उसके बाद ३४ पद्यों की एक बड़ी प्रशस्ति दी गई है। गुरुपट्टानुक्रम में सुधर्मा स्वामी से लेकर अपने समय तक की गुरुपरम्परा दी है और तपागच्छ की उत्पत्ति पर प्रकाश डाला है। इसके बाद तपागच्छ की पट्टावली दी गई है जिससे ज्ञात होता है कि ये विजयसौभाग्यसूरि के शिष्य थे। विजयलक्ष्मी इनका नाम था और इन्होंने इस ग्रन्थ पर प्रेमविजय आदि मुनियों के अभ्यास के लिए उपदेशसंग्रह नाम से वृत्ति लिखी थी, वह ग्रन्थ सं० १८४३ में समाप्त हुआ था। पट्टावलीपराग' में पृष्ठ २०६ पर दी गई तपागच्छान्तर्गत विजयानन्दसूरि-गच्छपरम्परा में इनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है । ये सिरोडी और हणादरा के बीच पालड़ी ग्राम में सं० १७९७ में जन्मे थे। पिता का नाम हेमराज और माता का आनंदीबाई था। सं० १८१४ में नर्मदा तट पर सिनोर में दीक्षा, उसी वर्ष सूरिपद और सं० १८५८ में सूरत में स्वर्गवास हुआ था।
धर्मकथा-संस्कृत में यह बृहत् कथाग्रन्थ है। इसमें छोटी-बड़ी १५ कथाएँ दी गई हैं। इसी में सीताचरित्रमहाकाव्य ४ सर्गों में वर्णित है जिनमें ५५६ श्लोक हैं। अन्य चरित्रों में असत्य भाषण पर ऋषिदत्ताकथा (४८५ श्लोक), सम्यक्त्व पर विक्रमसेनकथा (२३३ श्लोक) और वज्रकर्णकथा ( ९९ श्लोक ), जीवदया पर दामनककथा (१०४ श्लोक), सत्यव्रत पर धनश्रीकथा, चोरी पर नागदत्तकथा, ब्रह्मचर्य पर गजसुकुमालकथा, परिग्रहपरिमाण पर चारुदत्तकथा, रात्रिभोजन पर वसुमित्रकथा, दान पर कृतपुण्यकथा, शील पर नर्मदासुन्दरीकथा (२०५ श्लोक ) और विलासवतीकथा (५२२ श्लोक), तप पर दृढ़प्रहारिकथा और भावना पर इलातीपुत्रकथा दी गई है।
रचयिता या संग्रहकर्ता का नाम अज्ञात है पर प्रशस्ति में रचना सं० १३३९ (द्वितीय कार्तिक वदी ) दिया हुआ है । ___ एकादश-गणधरचरित-इसका ग्रन्थान ६५०० है। इसमें महावीर के ११ गणधरों की कथाएँ संकलित हैं। इसकी रचना खरतरगच्छ के देवमति उपाध्याय ने की है।
१. ५० कल्याणविजयगणिकृत. २. जिनरत्नकोश, पृ० १८८, पाटन ग्रन्थभण्डार सूची, भाग १, १७५-१७६. ३. जिनरत्नकोश, पृ. ६१.
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