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________________ कथा-साहित्य है, तथा काव्य को इतर महाकाव्यों की पद्धति से 'लक्ष्मी' शब्द से अंकित किया गया है।' यह अनुमान किया जाता है कि ये प्रशस्ति-पद्य मूल कर्ता के नहीं हैं और पीछे इसकी प्रतिलिपि करनेवाले वस्तुपाल ने स्वयं ही इस रचना को गरिमा प्रदान करने के लिए जोड़ दिये हैं। कथात्मक इन सर्गों की भाषा भी सहज, सरल एवं मृदु है । साधारण संस्कृत जाननेवाले के लिए भी इसकी भाषा बोधगम्य है। कवि की शैली वर्णनात्मक है जिसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग बहुत कम हुआ है। फिर भी इस कथानक भाग में संस्कृतज्ञों में प्रचलित बोल-चाल की भाषा का प्रयोग ही किया गया है । भाषा को शब्दालंकारों से सजाने का प्रयास सफल रहा है। भाषा में अनुप्रास और यमकालंकारों की रणनात्मक झंकृति जो यहाँ है व अन्यत्र बहुत कम दिखाई पड़ती है। सादृश्यमूलक अर्थालंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से किया गया है। इस काव्य के ऐतिहासिक भाग ( १ और १५ सर्ग) में विविध छन्दों का प्रयोग हुआ है और भाषा भी उदात्त है। कविपरिचय और रचनाकाल-काव्य के अन्त में दी गई प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके कर्ता उदयप्रभसूरि नागेन्द्रगच्छीय थे। उनसे पहले नागेन्द्रगच्छ में क्रमशः महेन्द्रसूरि, शान्तिसूरि, आनन्दसूरि, अमरचन्दसूरि, हरिभद्रसूरि, विजयसेनसूरि हुए । विजयसेनसूरि ही उदयप्रभसूरि और वस्तुपाल के गुरु थे। उक्त प्रशस्ति में धर्माभ्युदय के रचनाकाल का उल्लेख कहीं नहीं किया गया । पर इसकी जो सर्व प्राचीन प्रति मिली है उसे सं० १२९० में स्वयं वस्तुपाल ने अपने हाथों से लिखा है। इसके अन्त में यह उल्लेख है : सं० १२९० वर्षे चैत्र शु० ११ रवौ स्तम्भतीर्थवेलाकूलमनुपालयता महं श्री वस्तुपालेन श्री धर्माभ्युदयमहाकाव्यपुस्तकमिदमलेखि । ___ इससे निश्चय ही यह ग्रन्थ सं० १२९० से पूर्व लिखा गया होगा। प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार वस्तुपाल ने संघपति होकर प्रथम तीर्थयात्रा सं० १२७७ में की थी। इसकी पुष्टि गिरिनार के सं० १२९३ के एक शिलालेख से भी होती है । अतः धर्माभ्युदय महाकाव्य की रचना सं १२७७ के बाद और सं० १२९० के पूर्व कभी हुई है। १. इति श्रीविजयसेनसूरिशिष्यश्रीउदयप्रभसूरिविरचिते श्रीधर्माभ्युदयनाम्नि संघपतिचरिते 'लक्ष्म्यङ्के' महाकाव्ये तीर्थयात्राविधिवर्णनो नाम....."सर्गः । २. भूमिका, पृ० १४७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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