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________________ कथा-साहित्य २४३ में लिखे आख्यानकों में ४७वां प्राकृत गद्य में है, १२३वां प्राकृत उपेन्द्रवज्रा में और शेष ११५ प्राकृत आर्या छन्दों में । यत्र-तत्र अन्य छन्दों का प्रयोग किया गया है पर बहुत कम । इस ग्रन्थ से वृत्तिकार की संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में पटुता ज्ञात होती है । वृत्तिकार ने इन कथाओं का कलेवर प्रायः पूर्ववर्ती कृतियों से लिया है और इस बात का यत्र-तत्र निर्देश भी कर दिया है। उदाहरणार्थ १०वां' और ६५वां आख्यानक देवेन्द्रगणि ( नेमिचन्द्रसूरि ) कृत महावीरचरिय से अक्षरशः लिये गये हैं। ३२वें बकुलाख्यानक की विशेष घटना जानने के लिए वृत्तिकार ने देवेन्द्रगणि ( नेमिचन्द्रसूरि ) कृत रत्नचूड़कथा को देखने का निर्देश किया है। इसी तरह अन्य १९ आख्यानों में रामचरित, हरिवंश, आवश्यक, उत्तराध्ययन, निशीथ आदि ग्रन्थों को देखने का निर्देश किया है। इन आख्यानकों में कुछ तो प्रचलित जैन परम्परा के ढंग के हैं, कुछ कुक्कुटाख्यानक (१०९) अजैन परम्परा के पौराणिक ढंग के और कुछ लौकिक उदाहरणों का अनुसरण करते हुए लिखे गये हैं। इन आख्यानकों की कथावस्तु को अन्यान्य साहित्य के साथ तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाय तो बड़ी रोचक बाते ज्ञात होगी। इन कथानकों में नाना प्रकार के सुभाषित, सूक्त और लोकोक्तियां भरे पड़े हैं। अनेक प्रसिद्ध देश्य और प्राकृत शब्द भी इसमें मिलते हैं। रचयिता और रचनाकाल-इस कथात्मक वृत्ति के रचयिता आम्रदेवसरि हैं जो जिनचन्द्र के शिष्य थे। उन्होंने इसका प्रणयन वि० सं० ११९० (सन् ११३३ ) अर्थात् मूल गाथाओं के रचने के ठीक ६० वर्ष बाद किया था। कथामहोदधि-इसे कपूरकथामहोदधि' भी कहते हैं। इसमें छोटी-बड़ी सब मिलाकर १५० कथाएँ हैं ।' यह वज्रसेन के शिष्य हरिषेण द्वारा रचित उपदेशात्मक काव्य 'कर्पूरप्रकर' या सूक्तावली के १७९ पद्यों में वर्णित ८७ जैन धार्मिक और नैतिक नियमों को संकेत रूप में दी गई दृष्टान्त-कथाओं का पूर्ण विवरण देने के लिए रचा गया है, इसलिए इसे कर्पूरकथामहोदधि भी कहते हैं। १. चन्दना का भाख्यान. २. प्रस्तावना, पृ. ८-९. ३. जिनरस्नकोश, पृ. ६८. ४. इन कथानों की सूची पिटरसन रिपोर्ट ३, पृ. ३१६-१९ में दी गई है। ५. हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९१६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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