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________________ कथा-साहित्य २३९ इस कथाकोषप्रकरण की रचना वि० सं० ११०८ मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी रविवार को हुई थी। १. कथानककोश-इसे कथाकोश या कथाकोशप्रकरण भी कहा गया है। बृहट्टिप्पणिका के अनुसार यह प्राकृत ग्रन्थ है जिसमें २३९ गाथाएँ हैं। लेखक ने प्रारम्भ में एक गाथा में कहा है कि वह इस कोश में कुछ नयों और दृष्टान्तकथाओं को कह रहा है जिनके श्रवण से मुक्ति सम्भव है। गाथाओं में कथाओं का आकर्षक नामों से उल्लेख किया गया है । कहीं-कहीं एक ही दृष्टान्त की एकाधिक कथायें दी गई हैं। उदाहरण के लिए पूजा की भावना मात्र से स्वर्गसुख की प्राप्ति होती है, इसके लिए चौथी गाथा में जिनदत्त, सूरसेना, श्रीमाली और रोरनारी के नाम दृष्टान्त रूप में दिये गये हैं। प्रथम १७ गाथाओं में सब कथाएँ जिनपूजा और साधुदान से सम्बन्धित हैं। गाथाओं पर गद्य-पद्य मिश्रित एक संस्कृत टीका है पर उसमें दृष्टान्त कहानियाँ प्राकृत में दी गई हैं। कथाकार ने इसमें आगमवाक्य तथा संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के कुछ पद्यों को उद्धृत किया है। ___ रचयिता और रचनाकाल-इस कथाकोश में रचयिता का नाम नहीं दिया गया है पर मुनि जिनविजय के मतानुसार वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि ने ही इन गाथाओं को रचकर उनसे सम्बद्ध कथाओं की रचना वर्तमान रूप में की है। हो सकता है उन्होंने इसमें प्राचीन सामग्री भी सम्मिलित कर दी हो । वृहट्टिप्पणिका के अनुसार इसका समय सं० ११०८ है। श्री देसाई के अनुसार यह ग्रन्थ सं० १०८२-१०९५ के बीच रचा गया है। इसे मोटे रूप में ११वीं सदी के उत्तरार्ध की रचना मान सकते हैं। २. कथानककोश-यह एक गद्य-पद्यमयी रचना है जिसमें गद्य संस्कृत में है और पद्य कहीं संस्कृत में और कहीं प्राकृत में। इसमें श्रावकों के दान, पूजा, १. जिनरत्नकोश, पृ० ६५ (III); डा. मा० ने० उपाध्ये, हरिषेण के बृहत्कथाकोश की भूमिका, पृ. ३९. २. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० २०८, विण्टरनिल्स ने अपने अन्य हिस्ट्री माफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृ० ५१३ में इस कथाकोश का समय ई. सन् १०९२ दिया है जो भूल से संवत् के स्थान में सन् मानने से हुभा लगता है। ३. पं० जगदीशलाल शास्त्री द्वारा सम्पादित, मोतीलाल बनारसीदास द्वारा १९४२ में प्रकाशित; जिनरत्नकोश, पृ० १५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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