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________________ पौराणिक महाकाव्य पेथड़ अपरनाम पृथ्वीधर के चरित्र को लेकर १६वीं शती के कवि राजमल्ल ने भी पृथ्वीधरचरित लिखा है। नाभिनन्दनोद्धारप्रबंध: ___ इसका दूसरा नाम शत्रुजयमहातीर्थोद्धारप्रबंध भी है। इसमें गुजरात के पाटनगर के प्रसिद्ध जौहरी समरसिंह अपरनाम समराशाह के परिवार का तथा उसके धार्मिक कार्यों का अच्छा वर्णन किया गया है। साथ में उसके द्वारा सं० १३७५ में शत्रुजय तीर्थ पर उद्धार कार्यों का भी प्रचुर वणन है। यह एक ऐतिहासिक महत्त्व का भी ग्रन्थ है जिसका कि विवेचन पीछे करेंगे। रचयिता एवं रचनाकाल-इसकी रचना उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि के पट्टधर शिष्य कक्कसूरि ने सं० १३९२ में की थी। इसी समय के लगभग समरसिंह का स्वर्गवास भी हुआ था। जावडचरित्र और जावडप्रबंध : जावड़ (१६वीं श० का मध्य) मालवा के माण्डवगढ़ का धनाढ्य व्यापारी था और साथ में मालवा के तत्कालीन राजा गयासुद्दीन खिलजी का राज्याधिकारी भी था। उक्त काव्यों में जावड़ के संघपतित्व एवं सामाजिक प्रतिष्ठा और धर्मनिष्ठा का वर्णन है। जावड़ श्रीमालभूपाल एवं लघुशालिभद्र कहलाता था। इन काव्यों के लेखक एवं रचनाकाल ज्ञात नहीं हैं। जावड़ का चरित सर्वविजयगणि ने सुमतिसंभव नामक काव्य में विस्तृत रूप से दिया है। इस काव्य का रचनाकाल सं० १५४७ से १५५१ निर्धारित किया गया है । संभवतः उक्त दोनों काव्य भी उस समय के आस-पास की रचनाएँ हों। कर्मवंशोत्कीर्तनकाव्य : अकबर के समय में बीकानेर में कर्मचन्द्र मंत्री ओसवाल जाति का बड़ा ही शूरवीर, बुद्धिशाली तथा दानी पुरुष हो गया है। वह भक्त जैन तथा कुशल - राजप्रिय पुरुष था। उसकी कीर्ति राजस्थान से लेकर दिल्ली के मुगल दरबार तक १. जिनरत्नकोश, पृ० २१०, ३७२; प्रकाशित-हेमचन्द्र ग्रन्थमाला; मो० २० देसाई के जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ४२४-४२७ और चि० भा० शेठ के जैनिज्म इन गुजरात, पृ० १७१-१८० में समरसिंह का चरित्र विस्तार से दिया गया है। २. जिनरत्नकोश, पृ० १३४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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