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पौराणिक महाकाव्य
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रचयिता एवं रचनाकाल इसकी रचना पण्डित इन्द्रहंसगणि ने सं० १५७८ में की थी। इनकी रचना का आधार आचार्य लावण्यविजय द्वारा सं० १५६८ में गुजराती में निर्मित विमलप्रबंध है। पर ग्रन्थकार ने अन्य दूसरी सामग्री का उपयोग भी इसमें किया है। विमलशाह के सम्बंध की जो पुरानी प्रशंसाएँ अज्ञातप्राय हैं और जो कुछ प्रशस्तियों में अवशिष्ट हैं उनमें से कुछ का उपयोग कवि ने प्रस्तुत कृति में किया है।
विमल मंत्री पर सं० १५७८ में सौभाग्यनन्दि द्वारा विरचित कृति का भी उल्लेख मिलता है। इसका भी आधार लावण्यसभय का गुजराती ग्रन्थ है।
विमल मंत्री पर रचित ये कृतियां सामयिक नहीं हैं, इसलिए इनका ऐतिहासिक महत्त्व विचारणीय है। जगडूचरितः ___इसमें १३-१४वीं शताब्दी में हुए प्रसिद्ध जैनश्रावक जगडूशाह र चरित वर्णित है। इस लघु काव्य में ७ सर्ग हैं जिनमें ३८८ श्लोक हैं। काव्य में जगडू के अनेक धार्मिक कार्यों तथा परोपकारिता का वर्णन है। इसमें अनेक ऐतिहासिक प्रसंग हैं जिनकी चर्चा अन्यत्र की जायगी । ___ कविपरिचय एवं रचनाकाल-इसके प्रत्येक सर्ग के अन्त में दी हुई पुष्पिका से ज्ञात होता है कि इसके रचयिता धनप्रभसूरि के शिष्य सर्वानन्द थे। काव्य के अन्त में ऐसी कोई प्रशस्ति नहीं दी गई है जिससे कवि का विशेष परिचय और रचनाकाल जाना जा सके। फिर भी काव्य के प्रारंभ में कवि ने लिखा है कि 'गुरु के वचनों को स्मरण करके मैं जगहू के उत्तम चरित की रचना करता हूँ।' इससे यही ज्ञात होता है कि कवि जगडू के समय तो नहीं ही हुआ है। उसने जगडू के पावन कार्यों का विवरण गुरु के मुख से ही सुना था। संभवतः कवि के गुरु धनप्रभसूरि जगडू के समकालीन रहे हों और उन्होंने जगहू के
१. जिनरस्नकोश, पृ० ३५८, हीरालाल हंसराज, जामनगर । प्रस्तुत भाग के
पृ० १०४ में इस रचना को १३वें तीर्थकर विमलनाथ से सम्बद्ध
मानना भूल है। २. जिनरत्नकोश, पृ०३५८; जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ३६० पर टिप्पण. 1. जिनरत्नकोश, पृ० १२८; म० द० खक्खर, बम्बई, १८९६ में प्रकाशित.
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