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________________ पौराणिक महाकाव्य २२३ रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता कृपाचन्द्र के शिष्य जयसागरसूरि हैं। ग्रंथ के अन्त में दी गई प्रशस्ति में इन्होंने अपना जन्म सं० १९४३, दीक्षा सं० १९५६, उपाध्यायपद सं० १९७६ व आचार्यपद सं० १९९० में पालीताना में होना लिखा है । प्रस्तुत काव्य की रचना सं० १९९४ में फाल्गुन सुदी १३ को पालीताना में की गई थी। बीसवीं शताब्दी के उपाध्याय लब्धिमुनि ने अपने गच्छ के पूर्व आचार्यों के चरित पर आठ संस्कृत काव्यों का निर्माण किया है। वे ये हैं : १. युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि (६ सर्ग, १२१२ श्लोक) सं० १९९२ २. जिनकुशलसूरिचरित (६३३ पद्य) सं० १९९६ ३. मणिधारी जिनचन्द्रसूरि' (२०१ श्लोक ) सं० १९९८ ४. जिनदत्तसूरिचरित्र (४६८ श्लोक ) सं० २००५ ५. जिनरत्नसूरिचरित्र सं० २०११ ६. जिनयशःसूरिचरित्र सं० २०१२ ७. जिनऋद्धिसूरिचरित्र सं० २०१४ ८. मोहनलालजी महाराज स० २०१५ प्रभावक आचार्यों के समान ही जैनधर्म के पोषक एवं संवर्धक नरेशों, मन्त्रियों, धनी सेठों-साहूकारों एवं श्रावकों के चरितों को भी जैन कवियों ने अपने काव्य का विषय बनाया है। उनमें से कुछ रचनाओं का परिचय प्रस्तुत है। कुमारपालचरित: गुजरात का चौलुक्य नरेश कुमारपाल वैसे शैवधर्मी था पर आचार्य हेमचन्द्र और तत्कालीन अनेकों जैन धनिकों और विद्वानों के कारण उसने जैनधर्म और सिद्धान्तों को समझने, उनका अनुसरण करने एवं प्रचार करने में बड़ा ही योगदान दिया था। जैन विद्वानों ने इसके चरित को लेकर महाकाव्य, लघुकाव्य, नाटक, प्रबन्ध, कथाग्रंथ आदि लिखे हैं। उनमें से अनेक समकालिक होने से ऐतिहासिक महत्त्व के हैं और पश्चात्काल में श्रोताओं की रुचि बढ़ाने के लिए १. मणिधारी जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृतिग्रन्थ में इन रचनाओं का उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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