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(सं० १३९८) (१४वीं शती)
प्राकृत प्राकृत संस्कृत
पौराणिक महाकाव्य १०. कालकाचार्यकथा धर्मप्रभसूरि
जयानन्दसूरि विनयचन्द्र जिनदेवसूरि' रामचन्द्रसूरि सोमसुन्दर धर्मघोषसूरि' अज्ञातकर्तृक
(सं० १४१२) (सं० १४५८-१४९३) गुजराती (सं० १४७३) प्राकृत (सं० १४९०) प्राकृत
प्राकृत
संस्कृत (सं० १५०९) संस्कृत (सं० १५६६)
शुभशीलगणि११ देवकल्लोल१२
१. ५६ गाथाए; लेखक अंचलगच्छीय देवेन्द्रसूरि (स्वर्ग० १३२०) के शिष्य,
त्रैलोक्यप्रकाश, चूड़ामणिसारोद्धार के रचयिता. २. १२० गाथाए; लेखक तपागच्छ के धर्मसागर के शिष्य सोमतिलक के शिष्य,
अन्य रचना स्थूलभद्रचरित्र. ३. ८९ श्लोक; लेखक रत्नसिंहसूरि के शिष्य एवं पर्दूषणाकल्प, दीपमालिका
कल्प के कर्ता. ४. ९७ पद्य; जिनप्रभसूरि के शिष्य. ५. १७ संस्कृत-प्राकृत पद्य; लेखक बृहद्गच्छीय देवेन्द्रसूरि के शिष्य जिनचन्द्र
के शिष्य. ६. उपदेशमाला के अन्तर्गत, गुजराती गद्य, अपने युग के प्रभावक भाचार्य,
गुजराती में अनेक ग्रन्थ. ७. १०५ गाथाएं; अपर नाम धर्मकीर्ति; देवेन्द्रसूरि ( स्वर्ग० १३२०) के
शिष्य, अनेक स्तोत्रों के कर्ता. ८. १४४ गाथाएं. ९. १०७ गाथाएं. १०. ६५ श्लोक, गुजराती टीका सहित. ११. संक्षिप्त कथा १९ श्लोकों में; शुभशीलगणि की भरतेश्वर बाहुबलिवृत्ति से. १२. १०४ श्लोक; लेखक उपकेशगच्छीय कर्मसागर पाठक के शिष्य थे.
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