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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्राचीन पूर्वधरों ने जो भाग लिया उनके कथानक श्रमणवर्ग में गुरुशिष्य परम्परा से जीवित रहे । प्रथम, दस आगमों के ऊपर भद्रबाहु ने निर्युक्तियाँ लिखी थीं उनमें इन कथानकों का साधारण उल्लेख है । उनमें विस्तारपूर्वक उल्लेख नहीं हो सका कारण वे तो गाथाओं और सूत्रों का अर्थ ही बताती हैं। इसके बाद सूत्र और नियुक्तियों को विस्तार से समझाने के लिए प्राकृत चूर्णियाँ लिखी गई। इन चूर्णियों में ये कथानक विस्तार से उल्लिखित हैं । इन चूर्णियों को भी विस्तार से समझानेवाली टीकाएँ हरिभद्रसूरि आदि आचार्यों ने लिखी । इस विपुल कथानक समुदाय का उपयोग हेमचन्द्राचार्य ने परिशिष्ट पर्व रखने में किया है । प्रो० याकोबी ने परिशिष्ट पर्व की सम्पूर्ण सामग्री का विश्लेषण कर बतलाया है कि हेमचन्द्र ने इस ग्रन्थ में प्रायः पूरी की पूरी सामग्री प्राचीन स्रोतों से ली है । -२०४ फिर भी यह बिखरी सामग्री को ऐतिहासिक क्रम से सम्बद्ध करने में और ओजस्वी काव्य- शैली में प्रस्तुत करने में श्लाघनीय ग्रन्थ है । काव्य की दृष्टि से उन कथानकों को कल्पना और काव्य- माधुर्य देकर हेमचन्द्र ने खूब सजाया है और आवश्यक विस्तार तथा भाषापरिवर्तन द्वारा प्राचीन परम्परा के इतिहास को सचाई से प्रस्तुत किया है प्रथम पर्व से पंचम पर्व तक जम्बूस्वामी से लेकर भद्रबाहु तक का वृत्तान्त है। इनमें दूसरे-तीसरे पर्व अनेक प्रकार की प्राणिकथा, लोककथा, तथा नीतिकथाओं से भरे हुए हैं, पाँचवे पर्व के अर्धभाग से लेकर आठवें पर्व तक भारत के प्राचीन राजनैतिक इतिहास के लिए अद्भुत सामग्री भरी पड़ी है यथा-पाटलिपुत्र की स्थापना, नन्द राजाओं का आख्यान, मौर्य चन्द्रगुप्त और उसके मंत्री चाणक्य, वररुचि, शकटाल, पीछे विन्दुसार, अशोक, सम्प्रति आदि के विषय में महत्त्वपूर्ण बातें कही गई हैं । यह अंश भारतीय इतिहास के लिए अति महत्त्व का है । अन्तिम नवम से तेरह तक के पर्व स्थूलभद्र से लेकर वज्रस्वामी तक जैन परम्परा के इतिहास को प्रस्तुत करते हैं । इस तरह प्रस्तुत ग्रन्थ में जम्बूस्वामी से लेकर वज्रस्वामी तक पट्टधरों की जीवनियाँ और उनके अनुषंग से ऐतिहासिक कथानकों का अच्छा संग्रह किया गया है । इसके पूर्व भद्रेश्वर की कहावली में ६३ शलाका पुरुषों के उपरान्त संक्षेप में पट्टधरों तथा कालक से हरिभद्रसूरि तक युगप्रधानों की कथाएँ केवल संग्रह रूप में दी हैं । उक्त ग्रन्थ से परिशिष्ट पर्व में यह विशेषता है कि इसमें एकसूत्रता, प्रवाहिता, प्रसाद एवं सुश्लिष्टता आदि गुण अधिक पाये जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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