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________________ पौराणिक महाकाव्य १८९. अनावश्यक बातों को हटा देने से कथानक में पूर्ण धारावाहिकता पाई जाती है । इस काव्य के द्वितीय सर्ग में शृंगार रस, छठे और आठवें सर्ग में वीर रस, सातवें में करुण रस तथा शान्त रस की योजना की गई है। इस काव्य में प्रचलित सभी अलंकारों का व्यवहार किया गया है । विविध छन्दों के प्रयोग में कवि निष्णात है । प्रथम सर्ग में वंशस्थ, २, ६, ९ और १३ सर्ग में उपजाति तथा ४, ५, ७, ८ और ११ सर्ग अनुष्टुप् में, ३ सर्ग स्वागता में, १० सर्ग वसन्ततिलका में, १२ सर्ग गीति तथा भार्या छन्दों में निर्मित किये गये हैं । प्रत्येक सर्ग के अन्त में दो पद्यों के छन्द अवश्य देखे गये हैं और तेरहवें सर्ग में विविध छन्दों का प्रयोग हुआ है । काव्य चमत्कार के हेतु बीच-बीच में नीतिवचनों का भी प्रयोग किया गया है । रचयिता और रचनाकाल - कवि ने काव्य के अन्त में एक पद्य द्वारा अपना नाम वर्धमान भट्टारक तथा मूलसंघ, बलात्कारगण और भारतीगच्छ सूचित किया है । " पर उसने अपनी गुरुपरम्परा आदि का उल्लेख नहीं किया है। जैन शिलालेखों से बलात्कारगण के दो वर्धमानों के नाम ज्ञात होते हैं । शक सं० १३०७ ( ई० सन् १३८५ ) के विजयनगर से प्राप्त एक लेख में धर्मभूषण के गुरु के रूप में एक वर्धमान उल्लिखित हैं और दूसरे हुम्मच शिलालेख ( ई० सन् १५३० ) के रचयिता के रूप में माने गये हैं । विजयनगर के धर्म भूषण न्यायदीपिका ग्रन्थ के रचयिता ही हैं जिनके समय की पूर्वसीमा शक संवत् १२८०( ई० १३५८ ) मानी गयी है । इससे उनके गुरु का समय इसी के आस-पास रहा होगा | श्रवणबेलगोला से प्राप्त एक लेख में एक वर्धमानस्वामि का समय शक सं० १२८५ ( ई० सन् १३६३ ) दिया गया है । यदि ये वे ही वर्धमान हैं जो कि इस काव्य के रचयिता हैं तो इन्हें ईस्वी सन् की १४वीं शताब्दी उत्तरार्ध १. स्वस्ति श्रीमूलसंघे भुवि विदितगणे श्रीबलात्कार संज्ञ े, श्रीभारत्याख्यगच्छे सकलगुणनिधिवर्धमानाभिधानः । आसीद्भट्टारकोऽसौ सुचरितमकरोच्छ्रीवराङ्गस्य राज्ञो, भव्यश्रेयांसि तन्वद्भुवि चरितमिदं वर्ततामार्कतारम् ॥ १३.८७ २. जैन शिलालेख संग्रह, भाग २ ( मा० दि० जैन ग्रन्थमाला ), लेख सं० ५८५. ३. वी, लेहख सं० ६६७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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