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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास हुआ है तथा वह बहुनायकवाली रचना है। प्रस्तुत काव्य एक नायकवाली रचना है । इसमें ३१ सर्ग हैं जिनमें कुल मिलाकर २८१५ विविध वृत्त हैं ।' १८४ कथावस्तु - विनीत देश के उत्तमपुर नगर में राजा धर्मसेन और रानी गुणवती से वरांग नाम का राजकुमार हुआ। युवा होने पर उसका दश राजकुमारियों से विवाह किया गया । एक समय उस नगर में भगवान् नेमिनाथ के प्रधान शिष्य वरदत्त आये। उनसे राजा धर्मसेन और राजकुमार वरांग ने धर्म श्रवण किया और अन्त में सम्यक्त्व - मिध्यात्व का स्वरूप समझ वरांग ने उनसे अणुव्रत ग्रहण किया तथा सभी प्राणियों के प्रति मैत्री और प्रेम का आचरण प्रारंभ किया । राजा ने तीन सौ पुत्रों के रहते हुए भी वरांग के गुणों से प्रभावित हो उसे युवराज पद दिया। इससे वराङ्ग की विमाता मृगसेना और उसका पुत्र सुषेण डाह करने लगे और वरांग को भगाने के लिए उन्होंने सुबुद्धि नामक मंत्री से सहायता प्राप्त की। एक समय मंत्री के द्वारा शिक्षित दुष्ट घोड़ा वरांग को चढ़ने के लिए दिया गया जिसने कुमार को एक घने जंगल में ले जाकर पटक दिया जहाँ वरांग को अनेक कष्ट झेलने पड़े । एक बार एक हाथी की सहायता से उसने एक व्याघ्र के मुख से अपनी जान बचाई। वहीं एक पक्षी ने एक सुन्दरी का रूप धारण करके वराङ्ग को लुभाना चाहा किन्तु स्वदार सन्तोषव्रत की परीक्षा में वह अडिग निकला। वहीं भ्रमण करते समय वह भीलों द्वारा पकड़ा गया पर उनके मुखिया के पुत्र को सर्पदंश से अच्छा करने के कारण उसे उनसे मुक्ति मिली। एक बार भीलों से लड़कर उसने वणिग्दल की रक्षा की और उनके मुखिया के साथ ललितपुर आकर 'कश्चिद्भट' नाम धारण कर वहाँ रहने लगा । इधर वराङ्ग के अकस्मात् गायब हो जाने से उसके माता-पिता और पत्नियाँ बहुत शोकाकुल हो गये पर एक मुनि के उपदेश से सान्त्वना पाकर वे सब अपना समय धर्म ध्यान में बिताने लगे । एक बार मथुरा के राजा द्वारा ललितपुर पर चढ़ाई करने पर कश्चिद्भट नामधारी वरांग ने वहाँ के राजा की सहायताकर उसे मार भगाया । तब ललितपुर नरेश ने उससे अपनी कन्याओं के विवाह के साथ आधा राज्य प्रदान किया । एक समय उसके पिता के राज्य पर बकुलनरेश ने आक्रमण किया क्योंकि उसके सौतेले भाई सुषेण के राज्य सम्हालने के कारण शासन कार्य बिगड़ गया था । उसके पिता ने ललितपुर के राजा से १. जिनरत्नकोश, पृ० ३४२, डा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये (सं० ), वरांगचरित, माणिकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, १९३८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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