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________________ १८० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास महासेनस्य मधुरा शीलालंकारधारिणी । कथा न वर्णिता केन वनितेव सुलोचना || अर्थात् शीलरूप अलंकार को धारण करनेवाली और मधुरा वनिता के प्रशंसा किसने नहीं की ? धवल महामहासेन की सुलोचनाकथा का उल्लेख समान महासेन की सुलोचनाकथा की कवि ने रविषेण के पद्मचरित के साथ किया है मुणि महसेणु सुलोयणु जेण, पउमचरिउ मुणि रविसेणेण । रचयिता एवं रचनाकाल -- इस काव्य के रचयिता महासेन थे और वे वि० सं० ८३५ से पहले हुए हैं। उद्योतनसूरि और जिनसेन समकालीन तथा एक देशस्थ थे अतएव अधिक संभावना यही है कि दोनों द्वारा प्रशंसित यह कथा - ग्रन्थ एक ही था । संभवतः यह प्राकृत रचना थी । सुलोचनाचरित - यह ९ परिच्छेदों में विभक्त है । इसका ग्रन्थाग्र ४५२५ श्लोक-प्रमाण है ।" प्रशस्ति के अनुसार यह सुगम संस्कृत में लिखा गया है। " इसके रचयिता भट्टारक वादिचन्द्र हैं । इनकी अन्य रचनाएँ हैं पार्श्वपुराण, ज्ञानसूर्योदय, पवनदूत, यशोधरचरित, पाण्डवपुराण आदि तथा कई गुजराती ग्रन्थ । इस काव्य की एक प्रति ईडर के ग्रन्थभण्डार में है जो रचयिता के शिष्य ब्र० सुमतिसागर ने ब्यारानगर में वि० सं० १६६१ में लिखी थी । ग्रन्थ-रचना इससे अवश्य ही कुछ वर्ष पहले हुई होगी । ब्र० कामराज की एतद्विषयक रचना का नाम जयपुराण या जयकुमारचरित्र है । यह संस्कृत काव्य है । इसमें १३ सर्ग हैं । प्रभुराजकृत जयकुमारचरित्र का उल्लेख मात्र मिलता है । इस चरित पर अपभ्रंश में ब्र० देवसेन और रद्दधू की रचनाएँ भी मिलती हैं।" भरत के उक्त सेनापति के चरित्र के अतिरिक्त भरत के एक पुत्र एवं १. जिनरत्नकोश, पृ० ४४७; जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३८८. २. विहाय पदकाठिन्यं सुगमैर्वचनोत्करैः । चकार चरितं साध्या वा देवन्द्रो ऽल्पमेधसाम् ॥ ३. जिनरत्नकोश, पृ० १३२. ४. वही. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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