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________________ पौराणिक महाकाव्य १७९ ने अनेक सुख भोगे। एक समय महल की छत पर बैठे दोनों ने आकाशमार्ग से पार होते विद्याधरदम्पति को देखा और दोनों अपने पूर्व जन्म की घटना स्मरणकर मूञ्छित हो गये। पीछे सचेत हो पूर्व भवावलियों का वर्णन करते हुए सुख से समय बिताने लगे। एक बार एक देव ने आकर जयकुमार के शील की परीक्षा की। पीछे जयकुमार ने संसार से विरक्त हो भगवान् ऋषभदेव के पास दीक्षा ले ली। इस कथानक पर निम्नलिखित रचनाएँ अब तक उपलब्ध महासेन (वि० सं० ८३५ से पूर्व) सुलोचनाकथा गुणभद्र (वि० सं० ९०५ के लगभग) महापुराण के अन्तिम पांच पर्यों में हस्तिमल्ल (१३वीं शती) विक्रान्तकौरव या सुलोचनानाटक वादिचन्द्र भट्टा० (वि० सं० १६६१) सुलोचनाचरित ब्र० कामराज ( १७वीं शती का उत्तरार्ध) जयकुमारचरित्र ब्र० प्रभुराज पं० भूरामल जयोदयमहाकाव्य इन रचनाओं में विक्रान्तकौरव का परिचय नाटकों के प्रसंग में तथा जयोदयमहाकाव्य का शास्त्रीय महाकाव्यों के प्रसंग में करेंगे। शेष का परिचय इस प्रकार है। __ सुलोचनाकथा-इसका उल्लेख जिनसेन ने अपने हरिवंशपुराण में, उद्योतनसूरि ने अपनी कुवलयमाला में और धवलकवि ने अपने अपभ्रंश हरिवंशचरिउ में बड़े प्रशंसा भरे शब्दों में किया है। कुवलयमाला में इस कथा के विषय में कहा है सण्णिहियजिणवरिंदा धम्मकहाबंधदिक्खियणरिंदा । कहिया जेण सुकहिया सुलोयणा समवसरणं च ॥ ३९ ॥ अर्थात् जिसने समवसरण जैसी सुकथिता सुलोचनाकथा कही। जिस तरह समवसरण में जिनेन्द्र स्थित रहते हैं और धर्मकथा सुनकर राजा लोग दीक्षित होते हैं, उसी तरह सुलोचनाकथा में भी जिनेन्द्र सनिहित हैं और उसमें राजा ने दीक्षा ले ली है। कुवलयमाला से पाँच वर्षे बाद लिखे गये हरिवंशपुराण में उक्त अन्य के विषय में कहा है १. जिनरत्नकोश, पृ० ४४७; जैन साहित्य और इतिहास, पृ० १२०-१२१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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