SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रकार की लौकिक शिक्षाओं से भरा हुआ है। बीच-बीच में देशी भाषाओं के अनेक पद्य उद्धृत हैं। रचयिता और रचनाकाल-ग्रंथकार ने इतना बड़ा ग्रंथ लिखकर भी अपना नाम सूचित नहीं किया है। केवल ज्ञानसागरगणिशिष्य-अल्पमति दिया है। पर ज्ञानसागर के शिष्य ने प्राचीन गुजराती में २१ प्रकारी और अष्टप्रकारी पूजा की रचना की है। अष्टप्रकारी पूजा की रचना के अन्त में दी गई प्रशस्ति में सं० १७४३ दिया गया है तथा कर्ता के नाम पर 'ज्ञान-उद्योत' इस प्रकार का रिलष्टपद दिया गया है। हो सकता है गुरु का नाम ज्ञानसागर और शिष्य का नाम उद्योतसागर रहा हो। पृथ्वीचन्द्रचरित्र-पृथ्वीचन्द्र नृप की कथा भी प्रत्येकबुद्धचरितों की श्रेणी में आती है क्योंकि उसने सम्यग्दर्शन के प्रभाव से अपना इतना आध्यात्मिक विकास किया था कि उसे गृहस्थावस्था में ही बिना किसी के उपदेश से केवलज्ञान हो गया और मुक्ति प्राप्त हुई थी। उक्त कथा को लेकर जैन कवियों ने प्राकृत, संस्कृत तथा लोकभाषाओं में अनेकों रचनाएँ लिखी हैं। उनमें से ज्ञात का वर्णन इस प्रकार है : १. पुहवीचन्दचरिय सत्याचार्य (सं० ११६१) प्राकृत २. पृथ्वीचन्द्रचरित्र माणिक्यसुन्दर (सं० १४७८ ) पुरानी गुजराती जयसागरगणि (सं० १५०३) सत्यराजगणि (सं० १५३४ ) लब्धिसागर (सं० १५५८) रूपविजय (सं० १८८२) अज्ञात ८. पृथ्वीचन्द्रगुणसागरचरित्र अज्ञात ९. पृथ्वीचन्द्रचरित्र संस्कृत गद्य M ; अज्ञात १०. , अज्ञात कथा का सार-पृथ्वीचन्द्र नृप और वणिक-पुत्र गुणसागर ग्यारह भव पूर्व १. शंख नृप और कलावती रानी के रूप में जन्म ले सम्यक्त्व और शील के प्रभाव से उत्तरोत्तर विकास कर अगले भवों में २. राजा कमलसेन-रानी गुणसेना, ३. देवसिंह १. विशेष के लिए उक्त ग्रन्थ की प्रस्तावना देखें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy