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________________ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास जम्बूस्वामिचरित-इस काव्य में १३ सर्ग हैं और २४०० पद्य । कथावस्तु दो भागों में विभक्त है। पहली पूर्व भवों और दूसरी इस भव से सम्बद्ध है। प्रारंभ के चार सर्गों के सभी आख्यान पूर्वभवों से सम्बद्ध हैं और पंचम से जम्बू के इस भव की कथा प्रारंभ होती है। वे श्रेष्ठिपुत्र होते हुए भी पराक्रमशाली और वीरपुरुष दिखलाये गये हैं। उन्होंने एक मदोन्मत्त हाथी को वश में किया था इससे प्रभावित होकर ४ श्रीमन्त सेठों ने अपनी कन्याओं का विवाह इनसे कर दिया था। शेष कथा पूर्वोक्त प्रकार से है। इस काव्य की कथावस्तु को अनुष्टुप् छन्दों में ही रचकर कवि ने काव्यचमत्कार उत्पन्न करने में कोई कमी नहीं की। कवि युद्धक्षेत्र का वर्णन करते हुए वीर और भयानक रसों को मूर्तिरूप में प्रस्तुत करता है (७वां सर्ग)। ग्यारहवें सर्ग में सूक्तियों का सुन्दर समावेश किया गया है। रचयिता और रचनाकाल-इसके कर्ता कवि पं० रायमल्ल हैं। इनके अन्य ग्रन्थ पंचाध्यायी, लाटीसंहिता और अध्यात्मकमलमार्तण्ड मिलते हैं। इस ग्रन्थ की रचना आगरा नगर में सं० १६३२ चैत्र कृष्ण अष्टमी पुनर्वसु नक्षत्र में की गई थी। काव्य के प्रारंभ में कवि ने आगरा (अर्गलपुर ) का सुन्दर वर्णन दिया है। वहाँ उस समय अकबर बादशाह राज्य करता था जिसने कि नजियाकर और मद्यपान का निषेध कर दिया था। यह काव्य गगंगोत्रीय साहु टोडर अग्रवाल के लिए रचा गया था। कवि ने साहु टोडर के परिवार का पूरा परिचय दिया है । साहु टोडर ने मथुरा की यात्रा की थी और वहाँ जम्बूस्वामी के निर्वाणस्थान पर अपार धन व्ययकर अनेक स्तूपों का जीर्णोद्धार किया था। इसी की प्रार्थना से कवि ने आगरा में रहते हुए इस काव्य की रचना की थी। पीछे कवि आगरा छोड़ वैराट नगर में रहने लगे और शेष साहित्य-निर्माण वहीं किया। जंबूसामिचरिय-इसकी रचना प्राकृत गद्य में हुई है पर यत्र-तत्र सुभाषितों के रूप में प्राकृत पद्य भी उद्धृत किये गये हैं। इसमें जम्बूस्वामी १. मा. दिग. जैन ग्रन्थमाला, सं० ३५, बम्बई १९३६, जिनरत्नकोस, पृ० १३२. २. कवि वीरकृत अपभ्रंश जम्बुसामिचरिउ का इस काव्य पर प्रभाव दीखता है। ३. जैन साहित्य वर्धक सभा, भावनगर, वि० सं० २००४. द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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