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________________ पौराणिक महाकाव्य १५७ के आसपास की रचना होना चाहिए। इसकी एक ताडपत्रीय प्रति जैसलमेर जैन भण्डार से १४ वीं शताब्दी के पूर्व की मिलती है। जम्बूस्वामिचरित-सम्पूर्ण काव्य ११ सर्गों में विभक्त है।' यह काव्य सरल संस्कृत में लिखा गया है। काव्य में सुभाषितों का प्रयोग अधिकता से किया गया है । इस काव्य की सं० १५३६ की हस्तलिखित प्रति मिलती है। . रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता भट्टारक सकलकीर्ति के अनुज एवं शिष्य ब्रह्मचारी जिनदास हैं जिन्होंने सं० १५०८-१५२० में इसकी रचना की थी। इनका विशेष परिचय इनकी अन्य कृति हरिवंशपुराण के साथ दिया गया है (पृ० ५२)। ___ जम्बूस्वामिचरित-संस्कृत में रचे इस काव्य में ६ सर्ग हैं जिनमें ७२६ श्लोक हैं। इसमें पूर्वोक्त गुणपाल आदि द्वारा विरचित कथाओं में कुछ परिवर्तन किया गया है। इसके रचयिता जयशेखरसूरि हैं जो अंचलगच्छ के थे। इसका रचनाकाल वि० सं० १४३६ है। जंबूचरिय-इसमें २१ उद्देश हैं। इसे 'आलापकस्वरूपजम्बुदृष्टान्त'३ या 'जम्बु-अध्ययन' भी कहते हैं। यह प्राकृत रचना है। प्रारंभ 'तेणं कालेणं से होता है । इसे 'प्रकीर्णक' भी माना जाता है । ___ रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता नागौरीगच्छीय पद्मसुन्दर, उपाध्याय हैं जो तपागच्छ के बड़े विद्वान् थे। ये अकबर के हिन्दू सभासदों में से एक थे और उनके पाँच विभागों में से प्रथम विभाग में थे। इनका और इनकी रचनाओं का परिचय 'रायमल्लाभ्युदय' के प्रसंग में दिया गया है। १. जिनरत्नकोश, पृ० १३२, राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० २६; इस काव्य पर कवि वीरकृत अपभ्रंश कृति 'जम्बुसामिचरिउ' का पूर्ण प्रभाव दिखाई पड़ता है। २. जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, सं० १९६८-७०, गुजराती अनुवाद वहीं से, १९७०, जिनरत्नकोश, पृ० १३२. ३. जिनरत्नकोश, पृ० १२९. ४. नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास (द्वि० सं०), पृ० ३९५-९६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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