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पौराणिक महाकाव्य १३. सकलचन्द्र-भुवनकीर्ति के शिष्य
(वि. सं० १५२०) जम्बूचरिय (प्राकृत) १४. उपा० पद्मसुन्दर नागौरी
(वि. सं. १६२६-३९) जम्बूचरिय (प्राकृत) १५. पं० राजमल्ल (वि. सं. १६३२) जम्बूस्वामिचरित्र (संस्कृत) १६. विद्याभूषण भट्टारक (वि. सं. १६५३) जम्बूखामिचरित्र (संस्कृत) १७. जिनविजय (वि. सं. १७८५-१८०९) जम्बूस्वामिचरित्र (प्राकृत) १८. अज्ञातकर्तृक
जम्बूस्वामिचरित्र (संस्कृत गद्य) १९. पद्मसुन्दर
जम्बूसामिचरिय
__७५० गाथाएँ (प्राकृत) २०. सकलहर्ष
जम्बूस्वामिचरित्र
(११ पत्र) (संस्कृत) २१. मानसिंह
जम्बूस्वामिचरित्र
ग्रन्थान १३०० (संस्कृत) २२. अज्ञात
जम्बूस्वामिचरित्र १४ पत्र (संस्कृत) २३. अज्ञात
जम्बूस्वामिचरित्र
ग्रन्थाग्र ८९७ (संस्कृत गद्य) २४. अज्ञात
जम्बूस्वामिचरित्र
ग्रन्थान १६४४ (संस्कृत) २५. अज्ञात
जम्बूसामिचरिय (प्राकृत) जम्बूस्वामी का संक्षिप्त कथानक-भग० महावीर के काल में जम्बू राजगृह में एक श्रेष्ठिपुत्र के रूप में उत्पन्न हुए। वे अतिशय रूपवान् और अनेक कलाओं के पण्डित थे। एकबार सुधर्मा स्वामी से धर्मोपदेश सुनने के बाद जम्बू ने ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया और वैराग्यवृत्ति की ओर अग्रसर होने लगे। इसे रोकने के लिए माता-पिता ने उनका आठ सुन्दर कन्याओं से विवाह कर दिया पर वे सब भी उनके मन को सांसारिक सुखों में प्रवृत्त न करा सकी। दीक्षा की पूर्व रात्रि में उनके घर में एक बड़ा डाकू चोरी के लिए घुसा पर रात्रिभर वे अपनी पत्नियों को संसार के दुःखों का परिज्ञान कराने के लिए दृष्टान्त स्वरूप अनेक कथाएँ कहते रहे और उनके तर्कों और युक्तियों का खण्डन करते रहे । वह डाकू भी उनके उपदेशों को सुनकर संसार से विरक्त हो गया। अत: जम्बू , उनकी पत्नियाँ तथा वह चोर अपने साथियों के साथ दीक्षित हो गये।
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