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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसकी रचना प्रारम्भ से अन्त तक अनुष्टुप् छन्दों में हुई है। इसमें कुल मिलाकर ७४६ श्लोक हैं जो ११ लम्बों ( लम्भ) में विभक्त हैं। यह अपनी पूर्ववर्ती रचना गद्यचिन्तामणि से इस अर्थ में भिन्न है कि वह तो संस्कृत गद्य में
ओजपूर्ण भाषा में शृंगारादि रसों से परिप्लुत लिखी गई है और प्रौढमति लोगों के द्वारा ही पठनीय है जबकि यह बहुत ही सरल और प्रसादगुणयुक्त शैली में लिखी गई है, इसे सुकुमारमतिवाले बहुत अच्छी तरह पढ़ सकते हैं। इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कथा के साथ-साथ नीति और उपदेश भी चलता है। कवि प्रायः श्लोक के पूर्वार्ध में अपनी कथा को कहता चलता है और साथ-साथ उत्तराध में अर्थान्तरन्यास के द्वारा कोई न कोई नीति या शिक्षा की सुन्दर सूक्ति देता जाता है । यथा
अबोधयच्च तां पत्नों लब्धबोधो महीपतिः। तत्त्वज्ञानं हि जागर्ति विदुषामार्तिसम्भवे ।।
१.५७ + +
+ पराजेष्ट पुनस्तेन गवार्थं प्रहितं बलं । स्वदेशे हि शशप्रायो बलिष्ठः कुजरादपि ॥
२.६४
+ +
+ मत्सरी कौरवेणायं भर्त्सनादयुयुत्सत । मत्सराणां हि नोदेति वस्तुयाथात्म्यचिन्तनम् ।।
१०.३५ रचयिता और रचनाकाल-इस काव्य के रचयिता ओडयदेव वादीभसिंह हैं। गद्यकाव्य गद्यचिन्तामणि के रचयिता और इस काव्य के रचयिता के एक ही होने का अनुमान है। कुछ विद्वान् रचना-शैली और शब्द-योजना की भिन्नता के कारण दोनों के एककर्तृत्व होने में सन्देह करते हैं।' कवि के क्षेत्र और समय के सम्बन्ध में भी विवाद है। वी० शेषगिरिराव के अभिमत से कवि कलिंग के गंजाम जिले का निवासी था। गंजाम जिला तमिलनाडु के उत्तर में है और उड़ीसा प्रान्त के अन्तर्गत है। वहाँ ओडेय और गोडेय दो जातियाँ रहती हैं।
१. डा. हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० १७१.
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