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________________ २. " पौराणिक महाकाव्य अबतक संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी में एतद्विषयक २५ से अधिक कृतियाँ मिली हैं । यहाँ संस्कृत में उपलब्ध रचनाओं की सूची देकर कथावस्तु का संक्षिप्त परिचय दिया जायेगा और कुछ प्रकाशित रचनाओं का परिचय भी। १. प्रद्युम्नचरित महासेनाचार्य (११ वीं शती) भट्टारक सकलकीर्ति (१५ ,, ,,) ३. , भट्टा० सोमकीर्ति या सोमसेन ( सं० १५३० ) ४. शाम्बप्रद्युम्नचरित रविसागरगणि (, १६४५ ) तपागच्छ ५. प्रद्युम्नचरित शुभचन्द्र (१७ वीं शती) रत्नचन्द्र (सं० १६७१ )तपागच्छ भट्टा० मल्लिभूषण ( १७ वीं शती) भट्टा० वादिचन्द्र (,, ,) भट्टा० भोगकीर्ति समय अज्ञात १०. जिनेश्वरसूरि यशोधर प्रद्युम्न की संक्षिप्त कथा-श्रीकृष्ण की रानी रुक्मिणी से प्रद्युम्न हुए थे। जन्म की छठी रात्रि को उन्हें धूमकेतु राक्षस अपहरण कर ले गया और एक शिला के नीचे दबाकर भाग गया। उसी समय कालसंवर विद्याधर ने इन्हें उठा लिया और अपनी स्त्री को पुत्र-रूप में पालने के लिए दे दिया। प्रद्युम्न ने युवा होने पर कालसंवर के शत्रु सिंहस्थ को पराजित किया। प्रद्युम्न का बल एवं प्रतिभाचातुरी देखकर कालसंवर के अन्य पुत्र जलने लगे। जिनदर्शन के बहाने वे उसे वन में ले गये और एक के बाद अनेक विपत्तियों में फँसाते गये परन्तु प्रद्युम्न निर्भयता से उन पर विजय पाकर अनेक विद्याओं का धनी हो गया। उसने अपने बुद्धि-कौशल से पालक माता कंचनमाला से भी तीन विद्याएँ ले ली। पर कंचनमाला अपना स्वार्थ सिद्ध होते न देख ऋद्ध हो गई। कालसंवर को उसने उभाड़ा। वह प्रद्युम्न को मारने को तैयार हुआ कि इसी बीच नारद ने आकर बचाव किया। पीछे वास्तविक स्थिति का पता चला। प्रद्युम्न द्वारिका की ओर लौटे। रास्ते में दुर्योधन के विवाह के लिए जाती हुई कन्या का अपहरणकर विमान द्वारा द्वारिका आये। द्वारिका लौटने पर उन्होंने अपने वैमातुक भाई भानुकुमार एवं सत्यभामा को अपनी विद्याओं से खूब छकाया। तत्पश्चात् ब्रह्म १. जिनरत्नकोश, पृ० २६४ और १३३. १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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