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________________ पौराणिक महाकाव्य १४३ यह वाल्मीकि रामयण से बहुत-कुछ मिलती-जुलती है। सीता के सम्बंध में कहा गया है कि वह मन्दोदरी की पुत्री थी। उसे एक पेटिका में रख कर राजा जनक की उद्यानभूमि में गड़वा दिया था, जहाँ से हल चलाते समय उसकी प्राप्ति हुई थी। १८ वे प्रियंगुसुन्दरीलंभक में सगरपुत्रों के कैलाशपर्वत के चारों ओर खाई खोदने पर भस्म होने की कथा भी वर्णित है। १९-२० लंभक नष्ट हो गये हैं। इसके बाद केतुमतीलंभक में शान्ति, कुन्थु, अरह तीर्थंकरों के चरित तथा त्रिपृष्ट आदि नारायण-प्रतिनारायणों के चरित्र भी दिये गये हैं। पद्मावतीलम्भक में हरिवंश कुल की उत्पत्ति भी दिखलाई गई है। देवकीलंभक में कंस के पूर्व-भवों का भी वर्णन दिया गया है। ___इस तरह वसुदेवहिण्डी में अनेक आख्यान, चरित, अर्ध ऐतिहासिक वृत्त आये हैं जिन्हें उत्तरकालीन प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश कवियों ने पल्लवित कर अनेक काव्यों की रचना की है। यह ग्रन्थ हरिभद्र के समराहचकहा का भी स्रोत है। यहीं से अगड़दत्त के चरित को विकसित किया गया है। जम्बूचरितों के स्रोत यहीं प्राप्त होते हैं। ___ रचयिता और रचनाकाल-इस ग्रन्थ के दोनों खण्डों के दो रचयिता हैं। पहले के संघदासगणि वाचक हैं और दूसरे के धर्मदासगणि । पर इनके जीवनवृत्त और अन्य कृतियों के सम्बन्ध में कुछ परिचय नहीं मिलता। यह कथा आगमेतर साहित्य में प्राचीनतम गिनी जाती है। आवश्यकचूर्णि के कर्ता जिनदासगणि ने इसका उपयोग किया है। इसका 'वसुदेवचरित' नाम से सेतु और चेटक कथा के साथ निशीथचूर्णि में उल्लेख किया गया है। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने अपनी कृति विशेषणवती में भी इसका निर्देश किया है। इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि इसका रचनाकाल लगभग पाँचर्वी शताब्दी होना चाहिए। इसकी भाषा भी प्राचीन महाराष्ट्री प्राकृत है जिसकी तुलना चूर्णि ग्रन्थों से की जा सकती है। दिस्सहे. गच्छीय, वहाए, पिव, गेण्हेप्पि आदि रूप तथा देशी शब्दों के प्रयोग इसमें मिलते हैं। यह कथा-ग्रन्थ गद्यात्मक समासान्त पदावली से विभषित है। बीच-बीच में पद्य भी आ गये है। भाषा सरल, स्वाभाविक और प्रसादगुणयुक्त है। १. वसुदेवहिण्डी की भाषा के सम्बन्ध में डाक्टर भाल्सडोर्फ का लेख 'बुलेटिन आफ द स्कूल आफ ओरियण्टल स्टडीज', जिल्द ८, तथा वसुदेवहिण्डी के गुजराती भनुवाद की प्रस्तावना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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