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________________ १४२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चतुर्थ प्रकरण प्रतिमुख में अन्धकवृष्णि का परिचय और उसके पूर्वभवों का वर्णन किया गया है। अन्धकवृष्णि के पुत्रों में ज्येष्ठ समुद्रविजय था और कनिष्ठ वसुदेव । वसुदेव की आत्मकथा प्रद्युम्न के व्यङ्ग करने पर प्रारम्भ होती है। प्रसंग यह है कि सत्यभामा के पुत्र सुभानु के विवाह के लिए १०८ कन्याएँ एकत्र की गई किन्तु उन्हें छीनकर रुक्मिणीपुत्र शाम्ब ने विवाह किया। इस पर प्रद्युम्न ने अपने बाबा वसुदेव से कहा-देखिये ! शाम्ब ने बैठे-बैठाये १०८ बधुएँ प्राप्त करली और आप सौ वर्षों तक भ्रमण कर सौ मणियों को ही प्राप्त कर सके ! वसुदेव ने उत्तर दिया कि शाम्ब तो कूपमण्डूक है जो सरलता से प्राप्त भोगों से सन्तुष्ट हो जाता है। मैंने तो पर्यटन करके अनेक सुख-दुःखों का अनुभव किया है। पर्यटन से नाना प्रकार के अनुभव तथा ज्ञान की वृद्धि होती है । इसके बाद वसुदेव अपने १०० वर्षों के भ्रमण का विवरण प्रस्तुत करते हैं। पंचम प्रकरण शरीर प्रथम लम्भक से प्रारंभ होकर २९ वें लम्भक में समाप्त होता है। इसमें जिस कन्या से विवाह होता उसी के नाम से लम्भकों के नाम दिये गये हैं। इन लम्भकों के कथा-प्रसंगों में जैन पुराणों में समागत अनेक उपाख्यान, चरित, अर्ध ऐतिहासिक वृत्तों का संकलन किया गया है जो पश्चाद्वर्ती अनेकों काव्यों-कथाओं का उपजीव्य है। उदाहरण के लिए गन्धर्वदत्ता लम्भक में विष्णुकुमारचरित, चारुदत्तचरित तथा पुराने जमाने में हमारे देश में सार्थ ( काफिले) कैसे चलते थे और व्यापारी माल लाद कर समुद्र मार्ग से देश-विदेश अर्थात् चीन, सुवर्ण भूमि, यवद्वीप, सिंहल, बर्बर और यवन देश के साथ कैसे व्यापार करते थे आदि का जीता-जागता चित्र उपस्थित किया गया है। इसी गन्धर्वदत्ता लम्भक में अथर्ववेद-प्रणेता पिप्पलाद की कथा दी गई है। नीलजलसा तथा सोमसिरि इन दो लम्भकों में पूरा ऋषभदेवपुराण दिया गया है। इसी में पर्वत-नारद-वसु उपाख्यान भी दिया गया है। यहीं कई तीर्थों की उत्पत्ति-कथा भी दी गई है। सातवे लम्भक के पश्चात् प्रथम खण्ड का द्वितीय अंश प्रारंभ होता है। मदनवेगा लम्भक में सनत्कुमार चक्रवर्ती की कथा तथा रामायण की कथा दी गई है। यहाँ वर्णित रामकथा पउमचारेय की रामकथा से कई बातों में भिन्न है ।' १. ' जरनल ऑफ मोरियण्टल इंस्टिट्यूट, बड़ौदा, जिल्द २, भाग २, पृ० १२८ में प्रो० वी० एम० कुलकर्णी का लेख-'वसुदेवहिण्डो को रामकथा' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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